भगवान श्रीराम का बहुत गहरा रिश्ता है इस स्थान से

भगवान श्रीराम ने जन्म तो राज‌परिवार में लिया था, लेकिन उनके जीवन की सबसे बड़ी विडम्बना यही रही, कि जिस उम्र में उन्हें राजकुमार से राजा बनना था, उसी समय भाग्य ने उनके लिए वनवास लिख दिया. वनवास काल में वो अपनी पत्नी माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ आज के मध्यप्रदेश स्थित चित्रकूट पहुंचे थे. चित्रकूट वह स्थान है जहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने देवी सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए थे.

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चित्रकूट वही स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचे थे. तब तक दशरथजी का देहांत हो चुका था.  चित्रकूट धाम में पांच गांवों कारवी, सीतापुर, कामता, कोहनी, नयागांव का संगम है. भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से चित्रकूट को प्रमुख माना जाता है, क्योंकि भगवान श्रीराम, देवी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण सहित चित्रकूट के घने जंगलों में वनवास के दौरान ठहरे थे. यहां के सुंदर प्राकृतिक पर्वत पर कल-कल करते हुए बहते झरने, घने जंगल, चहकते पक्षी, बहती नदियां इस तीर्थ को और आकर्षक बनाते हैं.

यहां कामदगिरि वह स्थान है जहां पर भगवान श्रीराम ठहरे थे. इस स्थान पर भरत- मिलाप मंदिर भी स्थित है. यहां आज भी श्रद्धालु इस विश्वास से परिक्रमा करते हैं कि भगवान राम उनकी भक्ति से खुश होकर उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करेंगे.

भगवान श्रीराम के भाई भरत ने इस स्थान पर पवित्र जल का कुंड बनाया था, जहां विभिन्न तीर्थस्थलों से पवित्र जल एकत्रित कर रखा जाता है. यहां के रामघाट पर जानकी कुंड भी है. कहा जाता है कि सीताजी इस कुंड में स्नान करती थीं. रामघाट से 2 किमी दूरी पर स्थित जानकी कुंड तक पहुंचने के दो रास्ते हैं. यहां सड़क के रास्ते भी जा सकते हैं या रामघाट से नाव में बैठकर भी पहुंच सकते हैं.

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प्रभु श्रीराम की स्थली चित्रकूट की महत्ता का वर्णन संत तुलसीदास, वेद व्यास, आदिकवि कालिदास आदि ने अपनी कृतियों में किया है. मंदाकिनी नदी के किनारे बसा यह चित्रकूट धाम प्राचीनकाल से ही हमारे देश का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक सांस्कृतिक स्थल रहा है, आज भी चित्रकूट की पग-पग भूमि राम, लक्ष्मण और सीता के चरणों से अंकित है.

भगवान श्रीराम का जितना नाता अयोध्या से है, उतना ही नाता बुंदेलखंड से भी रहा है. सतना जिले के बिरसिंहपुर क्षेत्र स्थित सिद्धा पहा़ड़ पर ही श्रीराम ने निशाचरों का अंत करने की पहली बार प्रतिज्ञा ली थी. इसी पावन धरा चित्रकूट में दैत्यों के अंत के लिए श्रीराम ने पन्ना के सारंग धाम में धनुष भी उठाया था. इस तरह चित्रकूट धाम सनातन धर्मावलंबियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है.