श्रीराम ने सिखाया, दुनिया में कुछ नहीं होता वचन से बड़ा

इंसान की पहचान उसके गुणों से से होती है. किसी के बारे में भी बहुत जल्दी कुछ अनुमान नहीं लगाया जा सकता, एक दूसरे के सामने धीरे धीरे इंसान के चरित्र के पहलू उजागर होते हैं. आजकल की दुनिया में बहुत सारीं बातों और आदर्शों की अहमियत ख़तम हो चुकी है. लेकिन वही आदर्श कभी हमारी पहचान हुआ करती थे. इंसान अपने दिए वचन की गरिमा रखने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाता था.

रामायण में भी लिखा है, रघुकुल रीत सदा चलि आई, प्राण जाए पर वचन न जाई. ये उस रघुकुल के लिए लिखा गया है, जिसमें महाराज दशरथ ने अपने वचन की आन रखने के लिए अपने प्राण त्याग कर दिए. और उनके पुत्र श्रीराम ने अपने पिता के उसी वचन का मान रखते हुए, राज पाट सब कुछ छोड़ दिया और 14 वर्ष के लिए वनवास चले गए.

अपने मित्र महाराज सुग्रीव को दिए वचन का मान रखते हुए प्रभु राम ने बाली का अंत करके उन्हें किष्किन्धा का राजा बनाया. और रावण का अंत करके विभीषण को भी लंका का राजा बनाया.

इतिहास के अनुसार हमारे देश में ऐसे बहुत से राजा महाराजा हुए जिन्होंने अपने वचन का मान रखते हुए, सुख वैभव छोड़ दिया. यहाँ तक कि, अपने प्राणों के बाज़ी भी लगा दी. किसी को भी दिया वचन उनके लिए जीवन का सबसे बड़ा धर्म होता था.

आज वो सारे जीवन मूल्य बदल चुके हैं. इंसान दिन भर में कई कमिटमेंट्स करता है. और उसे ये भी याद नहीं रहता कि, किस वक़्त उसने, किससे क्या कहा. और तो और खुद से किये गए वादे भी इंसान पूरे नहीं कर पाता. और इन्ही सब बातों से धीरे धीरे एक दूसरे की नज़रों में इंसान की अहमियत कम होने लगती है. रिश्ते बिखरने लगते हैं. सब कुछ होते हुए भी जीवन में खालीपन रहता है. वो ख़ुशी जिसे हम पूरी जिंदगी ढूंढते रहते हैं, वो हमसे दूर भागती रहती है.

इसीलिए हमें हमेशा नपी तुली बात करना चाहिए. अपनी बात कहने से ज्यादा दूसरे की बात सुनने की क्षमता खुद में विकसित करनी चाहिए. और वादे वही करना चाहिए, जो हम निभा सकें. छोटी छोटी बातों का ध्यान रखने से इंसान का कद बड़ा बन जाता है.