श्रीमद्भागवत पुराण को सनातन वांग्मय (साहित्य) का मुकुटमणि माना जाता है। यह सनातन धर्म का सबसे अधिक प्रचलित और सर्वमान्य पुराण है। इसमें वेदों, उपनिषदों तथा दर्शन के गूढ़ विषयों और रहस्यों को सरलता पूर्वक समझाया गया है। भक्ति योग, ज्ञान योग, वैराग्य, निष्काम कर्म, ज्ञान साधना, सिद्धि साधना, धर्म, मर्यादा, द्वैत अद्वैत, निर्गुण सगुण, व्यक्त जैसे गूढ़ विषयों का सरल संपादन इस ग्रंथ में मिलता है।
इसमें भगवान श्रीहरि विष्णु के चौबीस (24) अवतारों का वर्णन है। यह पुराण भगवान शुकदेव और महाराज परीक्षित के संवाद के रूप में वर्णित है और यही सूत जी द्वारा जिज्ञासु साधु-संतों को सुनाया गया था। इस प्रकार इसके कई वक्ता और श्रोता हो चुके हैं जिससे भागवत पुराण की महिमा समझी जा सकती है। भक्ति मार्गी शाखा का यह अद्वितीय ग्रंथ है।
इस पुराण में बारह (12) स्कंध, तीन सौ पैंतीस (335) अध्याय और अट्ठारह हजार (18000) श्लोक हैं।
प्रथम स्कंध
इसमें भक्ति योग का वर्णन है। भक्ति को उत्पन्न करने और उसे स्थाई रखने के उपायों पर प्रकाश डाला गया है साथ ही ज्ञान वैराग्य आदि का भी वर्णन है। श्री हरि विष्णु के चौबीस अवतारों की कथा, नारद के जन्मों का वर्णन महाराज परीक्षित की कथा, श्री कृष्ण का द्वारका गमन, विदुर के उपदेश (विदुर नीति) और पांडवों का स्वर्गारोहण इस स्कंध में वर्णित है।
द्वितीय स्कंध
ब्रह्मांड की उत्पत्ति का वर्णन, विराट पुरुष के स्वरूप और स्थिति का वर्णन, भगवत गीता का उपदेश आदि इस स्कंध में वर्णित है।
तृतीय स्कंध
उद्धव द्वारा श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन, ब्रह्मा जी की उत्पत्ति, काल विभाजन, युगों का निर्धारण, वराह अवतार, हिरण्याक्ष का वध, कपिल मुनि की कथा एवं सांख्य शास्त्र का वर्णन।
चतुर्थ स्कंध
राजर्षि ध्रुव तथा महाराजा पृथु का वर्णन।
पंचम स्कंध
समुद्रों, पर्वतों, नदियों, पातालों, भिन्न-भिन्न नरकों आदि के उत्पन्न होने की कथाएं और उनकी स्थितियां। भारतवर्ष का भौगोलिक वर्णन किया गया है।
षष्ठम स्कंध
देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि के उत्पन्न होने की कथाएं, अजामिल की कथा, दधीचि के महादान की कथा, वृत्रासुर के वध की कथा।
सप्तम स्कंध
हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष की कथा, नरसिंह अवतार की कथा, भक्त प्रहलाद के चरित्र का वर्णन।
अष्टम स्कंध
गजेंद्र मोक्ष, मन्वन्तरों की कथा, वामन अवतार की कथा, मत्स्य अवतार की कथा, समुद्र मंथन और मोहिनी अवतार का वर्णन।
नवम स्कंध
वैवस्वत मनु और उनके पांच पुत्रों- इक्ष्वाकु, नेमि, चंद्र, विश्वामित्र तथा पुरु का वर्णन और उनके वंशों का वर्णन। श्री राम की कथा और तत्कालीन राजवंशों का वर्णन।
दशम स्कंध
भगवान श्री कृष्ण की अपार लीलाएं तथा उनके महात्म्य का वर्णन। (भागवत पुराण के इस स्कंध को भागवत पुराण का हृदय माना जाता है। एक सप्ताह की जो भागवत कथा होती है उनमें अधिकांश कथा भागवत के इसी दशम स्कंध की ही होती है। इस स्कंध में वर्णित ‘रास पंचाध्याई’ आध्यात्मिक और साहित्यिक दृष्टि से अद्वितीय है बहुत महत्वपूर्ण है।)
एकादश स्कंध
राजा जनक और नौ योगियों का संवाद, दत्तात्रेय भगवान के चौबीस गुरुओं का वर्णन, वर्णाश्रम व्यवस्था, ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग का वर्णन। यदुवंश के संहार का वर्णन।
द्वादश स्कंध
विभिन्न युगों का वर्णन और भगवान के उपांगों का वर्णन इस अंतिम स्कंध में है।
श्रीमद्भागवत का आध्यात्मिक संदेश है अद्वैतवाद- अर्थात सब कुछ एकमात्र ईश्वर ही है। ईश्वर में ही सब है और सब में ईश्वर है। ईश्वर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, इसे अद्वैतवाद कहते हैं।
श्रीमद्भागवत पुराण, भक्तिरस और अध्यात्म ज्ञान का संगम है। भागवत को वेद रूपी कल्पतरु का फल माना गया है। भागवत के लिए भागवत में ही कहा गया है —
सर्ववेदांतसारं हि श्रीभागवतमिष्यते।
तद्रसामृततृप्तस्य नान्यत्र स्याद्रति: क्वचित।।
अर्थात भागवत वेदांत का सारांश है। इसके रसामृत को पान करने से जो तृप्त हो गया है उसे कहीं और कोई दूसरा आनंद नहीं भाता।
भागवत में वर्णित श्री कृष्ण की लीलाएं और उनकी महिमा को आराध्य और आधार मानकर मध्ययुगीन वैष्णव संप्रदाय में अनेक कालजई विद्वान भक्तों ने अनेकानेक अद्भुत रचनाएं की हैं। अष्टछाप के कवियों – सूरदास जी, नंद दास जी आदि सहित निंबार्क संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, ब्रजभाषा संप्रदाय आदि ने भागवत में वर्णित कृष्ण लीला का अपने अपने भाव में अद्भुत वर्णन किया है। मिथिला में विद्यापति, बंगाल में चंडीदास, असम में शंकरदेव, उत्कल में उपेंद्र भंज, महाराष्ट्र में नामदेव, गुजरात में नरसी मेहता, राजस्थान में मीराबाई आदि ने भागवत के नायक श्री कृष्ण भगवान की लीला को आत्मसात करके उसका भाव भरा वर्णन किया है। तमिल, आंध्र, कन्नड़ तथा मलयालम के वैष्णव भक्तों पर भी भागवत का बहुत प्रभाव रहा है।