सीता जी ने एक आदर्श पत्नी की तरह अपनी गुप्तचरियों द्वारा प्रभु श्री राम की दुविधा और उनके अंतर्द्वंद का पता लगा लिया। उन्होंने रामजी के मन का भार दूर करने के उद्देश्य से राम जी से कहा- ‘आपने समुद्र पर सेतु बांध लिया, रावण जैसे त्रिलोक विजई को मार दिया,अपना जीवन दांव पर लगा दिया मुझ जैसी एक सामान्य सी स्त्री के लिए।’
इस पर राम जी ने बड़ी दृढ़ता से कहा- सीते! सीता और राम का संबंध कोई उपहास का विषय नहीं है। यह तो एक छोटा सा समुद्र था, तुम्हारे लिए यदि धरती से किसी दूसरे लोक तक सेतु बांधना पड़े तो मैं वहां भी पहुंच जाऊंगा। तुम मेरे प्रेम को जानती नहीं हो। राम का एक पक्ष यह भी है- उनका प्रेमपक्ष।
पत्नी के प्रति अपने उत्तरदायित्व को निभाते हुए रावण जैसे अजेय राक्षस को मारकर राम जी ने यह प्रमाणित कर दिया था परंतु आज पति राम और राजा राम के बीच फंसे श्रीराम निर्बल और असहाय हो गए।
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राजधर्म और मर्यादा में जकड़े हुए राम और- पति के राजधर्म और मर्यादा पर अपना तन मन जीवन सबकुछ समर्पित करने को संकल्पित सीता। पति पत्नी पर एक दूसरे के समर्पण का आदर्श उदाहरण।
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Jai Shriram 🙏#goodmorning
Gepostet von Arun Govil am Samstag, 13. Juni 2020
‘एक स्त्री के लिए आप इतने चिंतित रहें कि राजकाज पर प्रभाव पड़े यह अयोध्यापति को शोभा नहीं देता।’ सीता जी ने इसी तरह के और कई तर्क देकर राम जी को उनसे उनका कर्तव्य और राजधर्म निभाने का आग्रह किया और आपसी सहमति से दोनों ने एक दूसरे का परित्याग कर दिया।
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राम ने लक्ष्मण से सीता को वन में छोड़ आने के लिए कहा तो लक्ष्मण जी अपनी माता जैसी सीता के प्रति ऐसे अन्याय से दुखी भी हुए और क्रोधित भी। इस पर उन्हें समझाते हुए राम जी ने कहा- हम राजधर्म से विवश हैं लक्ष्मण। राजा बनने के पश्चात हमें व्यक्तिगत भावनाओं में उलझने का कोई अधिकार नहीं रहा। हमें राजा का धर्म निभाने दो और तुम राजा की आज्ञा का पालन करो।
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पति को राजधर्म निभाने और अपने कर्तव्य पर बनाए रखने के लिए सीता ने स्वेच्छा से राजभवन त्याग दिया।
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इस प्रसंग पर मानव ह्रदय तब भी बहुत रोया था आज भी रोने के अलावा कुछ नहीं कर पाता। स्त्रियों के लिए समाज की सोच बहुत घातक है। स्त्रियों को उनके सम्मान और चरित्र को प्रमाणित करने के लिए कोई शर्त, कोई परीक्षा नहीं होनी चाहिए। उनका आचरण, उनका व्यवहार, उनकी जीवनशैली ही सबसे बड़ा प्रमाण होता है।
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रथ में बिठाकर वन तक ले जाने के बाद भी लक्ष्मण जी सीता जी को अकेले छोड़कर किसी भी तरह वापस नहीं आना चाहते। वे कहते हैं-‘ मैं आपके पुत्र की तरह यहां आपकी सेवा करूंगा पर आपको अकेला छोड़कर राजमहल वापस नहीं जाऊंगा।’
सीता जी उन्हें बहुत समझाती हैं और कहती हैं ‘अगर मुझे मां कहा है तो मां की आज्ञा मानो और राम जी के राजधर्म पालन में उनके सहयोगी बनो।’
धरती पर एक निशान बनाकर सीता जी कहती हैं कि ‘लक्ष्मण एक दिन तुमने रेखा खींचकर मुझे उसके बाहर आने से मना किया था आज मैं यह सीमा बाँधकर तुम्हें आज्ञा देती हूं, तुम्हें मेरी शपथ है इसे लाँघ कर मेरे पीछे ना आना।’
लक्ष्मण जी रोते रह जाते हैं और सीता जी अयोध्या वासियों के लिए आशीर्वाद और मंगल कामना देकर वन की ओर चली जाती है।
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पति पत्नी का रिश्ता हो या देवर भाभी का-रामायण के इन आदर्श चरित्रों ने सारी दुनिया के लिए जो सीख दी है उसे बहुत गंभीरता से जानने समझने और जीवन में उतारने की आवश्यकता है। क्योंकि आज समाज में पारिवारिक रिश्तों की जो स्थिति है वो किसी से छिपी नहीं है।