लक्ष्मण जी के समझाने के बाद सुग्रीव, राम जी से मिलने उनके पास आते हैं और चरणों में गिरकर क्षमा याचना करते हैं।
रामजी उन्हें उठाकर हृदय लगाते हैं और कहते हैं–मित्र का स्थान चरणों में नहीं हृदय में होता है मित्र।
ये है राम की मित्र वत्सलता-सुग्रीव पश्चाताप करते हुए बार-बार कहते हैं कि मैं अपना कर्तव्य भूला नहीं था बस थोड़ा सा राजमद में लिप्त हो गया था, मुझ पर संदेश ना करें मैं आपका सेवक ही हूं।
इस पर राम जी कहते हैं मित्रता में संदेह नहीं किया जाता, केवल अभिन्न भाव रखकर विश्वास किया जाता है। ऐसे हैं प्रभु श्री राम जो किसी को भी छोटा बड़ा नहीं समझते।
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सुग्रीव ने बहुत बड़ी सेना बुलाकर उसके चार विभाग करके चारों दिशाओं में सीता जी की खोज के लिए भेजे। हर वानर ने प्राण प्रण से अपने आप को राम जी की सेवा में समर्पित होने का वचन दिया।
नर वानर की मित्रता का यह प्रसंग प्रभु श्रीराम के जीव प्रेम का प्रमाण है। मात्र मानव से ही नहीं, राम जी ने जटायु, सुग्रीव,जामवंत जैसे पशु पक्षी शरीर धारियों से भी पूरी आत्मीयता से संबंध निभाए।
बुद्धं शरणं गच्छामि 🙏
Gepostet von Arun Govil am Donnerstag, 7. Mai 2020
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सीता की खोज में चारों दल पृथ्वी पर चारों तरफ घूम कर सीता जी की खोज कर रहे हैं। समय बीता जा रहा है पूर्व दिशा का दल निराश वापस आ गया। पश्चिम दिशा का दल निराश वापस आ गया। उत्तर दिशा का दल भी निराश होकर वापस आ गया।
दक्षिण में अंगद के नेतृत्व में गया दल रास्ते की बहुत सारी परेशानियां झेलता हुआ आगे बढ़ रहा था, भूख प्यास थकान निराशा सब अपने चरम पर थे, परंतु मन में दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास बहुत प्रबल थे।
और इसी भरोसे के कारण वे कार्य सिद्धि की ओर बढ़ रहे थे।
महा तपस्विनी स्वयंप्रभा द्वारा समुद्र तट तक पहुंचाए जाने के बाद, जटायु के भाई संपाती द्वारा 100 योजन समुद्र पार लंका में सीता जी के होने की पक्की सूचना इस दल को मिल चुकी है। यह इस दल के आत्मविश्वास का ही परिणाम है।
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सागर पार जाने में उस दल का कोई भी वीर समर्थ नहीं था। हनुमान जी को जामवंत जी ने उनका भूला बल याद दिलाया और वे सागर पार जाने को तैयार हुए।
हनुमान जी का अपना बल भूल जाने का कारण जो भी रहा हो परंतु रामायण का यह प्रसंग हमें ये सीख देता है– के अपने बल, अपनी बुद्धि और अपने ज्ञान का हर जगह उपयोग या प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। जब उचित समय हो जब आवश्यकता हो, तभी अपने बल बुद्धि और ज्ञान का उपयोग या प्रदर्शन करें।।