सनातन धर्म के हिसाब से 11वां महीना माघ का होता है. इसकी शुरुआत 29 जनवरी से हुई है और ये महीना 27 फरवरी तक रहेगा. इस महीने गंगा स्नान के लिए देश-विदेश से भक्त और साधु प्रयागराज, काशी, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार जैसे तीर्थ स्थल पर पहुंचते हैं. जानकारी के अनुसार माघ महीने में प्रयाग के संगम में स्नान करने का विशेष महत्व है. गंगा, यमुना और सरस्वती इन नदियों का संगम प्रयाग में है. साधु,संत इस महीने यहां पहुंचते हैं और यहां पर गंगा के तट पर समय व्यतीत करते हैं. साधु-संतों के इस समय को कल्पवास कहा जाता है. इस समय पर विशेष रूप से लगने वाले मेले के कारण यहाँ का वातावरण कुंभ मेले के त्योहार की तरह हो जाता है. इस मेले को माघ मेले के नाम से भी जाना जाता है.
महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि-
माघं तु नियतो मासमेकभक्तेन य: क्षिपेत्।
श्रीमत्कुले ज्ञातिमध्ये स महत्त्वं प्रपद्यते।।
अहोरात्रेण द्वादश्यां माघमासे तु माधवम्।
राजसूयमवाप्रोति कुलं चैव समुद्धरेत्।। (महाभारत अनुशासन पर्व)
मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस माघ महीने सुबह जल्दी उठता है और विधिवत पूजा-अर्चना करता है और पूरे महीने सिर्फ एक समय पर ही भोजन करता है तो उसे और उसके परिवार को अक्षय पुण्य मिलता है. जो भी नाकारात्मक प्रभाव रहता है वह सकारात्मक प्रभाव में बदल जाता है. साथ ही इस माह की द्वादशी तिथि पर भगवान माधव या श्रीकृष्ण की पूजा जो भी मनुष्य करता है उस भक्त को यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है.
गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि-
माघ मकरगत रबि जब होई। तीरतपतिहिं आव सब कोई।।
देव दनुज किन्नर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं।।
पूजहिं माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता।
इस चौपाइ का मतलब है कि जो भी मनुष्य इस महीने गंगा स्नान करता है उसे हमेशा जीवन में तरक्की प्राप्त होती है और क्लेश दूर हो जाते हैं. इस महीने जल सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, और फिर इस दिन से सभी श्रद्धालू इस तीर्थ पर पहुंचना शुरु कर देते हैं.