सोने का हिरण और लक्ष्मण रेखा

शूर्पणखा राम लक्ष्मण को देखकर कामातुर हुई थी और अपनी कामवासना शांत करने के लिए उनसे उलझी थी परंतु रावण को उसने झूठी कहानी बताई और रावण ने राम से युद्ध की घोषणा कर दी।

इसपर रावण के छोटे भाई विभीषण ने जो तर्क दिए उन पर हमें ध्यान देना चाहिए- विभीषण ने कहा कि अगर आक्रमण हमारी सेना ने किया था तो उसका संहार करके राम ने कोई गलत काम नहीं किया। यहां दो बातें सीखने को मिलती हैं—

पहली तो ये कि हिंसक और उग्र कार्यों की शुरुआत हमें बिल्कुल नहीं करनी चाहिए।
दूसरी अगर कोई करें तो उसे उसी की भाषा में जवाब देकर सत्य और धर्म की रक्षा करनी चाहिए।

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मेघनाथ द्वारा खर दूषण के निर्णय के समर्थन पर विभीषण कहते हैं कि ‘अगर राम ने अपनी राज्य सीमा में अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए हमारे राक्षसों को मारा तो यह उन्होंने गलत नहीं किया। खर दूषण को बिना उनके बल का पता लगाएं उन पर आक्रमण नहीं करना चाहिए था।’यहां भी दो बातें ध्यान देने योग्य विभीषण जी के मुख से हुई हैं-

पहली ये कि जो लोग हम पर निर्भर हैं उनकी सुरक्षा हमारी पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए। भले ही उसके लिए हमें किसी से भी भिड़ना पड़ जाए।

दूसरी ये के बिना सामने वाले की ताकत का अंदाजा लगाए किसी से भिड़ना भी नहीं चाहिए। शूर्पणखा द्वारा झूठी कहानी बनाकर भड़काने पर रावण और मेघनाथ के उत्तेजित होने पर विभीषण यही कहते हैं जोश में होश नहीं खोना चाहिए अन्यथा सिर्फ नुकसान होता है।

शूर्पणखा के भड़काने पर मंदोदरी रावण से कहती हैं-अग्नि रोग सर्प और शत्रु को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए। आग जरा सी भी बची रही तो बढ़ते बढ़ते पूरे वातावरण को जला सकती है। रोग जरा सा भी छोड़ दिया गया तो दोबारा पूरे शरीर को रोगी बना सकता है। सांप छोटा हो या बड़ा पर उसके जहरीले होने से इंकार नहीं किया जा सकता। दुश्मन कितना भी कमजोर हो जाए लेकिन जीवित छोड़ देने पर दोबारा कभी भी संगठित होकर आप को हरा सकता है।

मतलब रामायण का हर चरित्र, हर पात्र, इंसान के काम की कोई ना कोई सीख हर कदम पर दे रहा है। हमें बहुत ध्यान से रामायण के पात्रों को, रामायण की शिक्षाओं को देखना और समझना चाहिए।

धर्म और परोपकार के पथ पर चलने के कारण राम वनवासी होकर भी उस समय की बड़ी से बड़ी शक्ति से लड़कर जीतते रहे। परन्तु अधर्म और स्वार्थ के पथ पर चलकर त्रिलोक विजयी और महाज्ञानी रावण एक चोर की भांति सीताहरण की योजना बनाता है।

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रावण को समझाते हुए मारीच कहते हैं कि ‘आपने जितनी भी शक्तियां प्राप्त की हैं वे सब धर्म और पुण्य के दम पर प्राप्त की हैं और अगर इनका प्रयोग अधर्म और पाप के लिए किया गया तो यही विनाश का कारण बनेंगी।’

गंभीरता से विचार करने वाली बात है। आज भी समाज में ऐसे बहुत से रावण जैसे चरित्र आतंकवादियों के रूप में दुनिया में मौजूद है जिन्होंने अपनी सारी ताकत किसी ना किसी सभ्य देश से ही पाई है परंतु वे अपनी इस ताकत का इस्तेमाल उन्हीं देशों के विनाश में करने पर लगे हुए हैं।

मायामृग और सीताहरण के प्रसंग में कुछ बातें विशेष ध्यान देने योग्य हैं- लोभ हमेशा बड़ी-बड़ी विपत्तियों का कारण बना है। सीता जी अगर स्वर्ण मृग के लोभ में ना पड़तीं तो राम जी अर्थात अपने पति को स्वयं से दूर ना भेजतीं और अगर पति को दूर ना भेजतीं तो वे असुरक्षित ना होतीं।

पति के दूर होने पर भी लक्ष्मण जी अर्थात पारिवारिक जनों द्वारा बनाई गई मर्यादा की रेखा में रहतीं तो भी सुरक्षित रहतीं। अच्छे काम के लिए ही सही परंतु मर्यादा तोड़ना नारी को कितना भारी पड़ सकता है ये इस प्रसंग की सबसे बड़ी सीख है।

किसी दूसरे के दिखावे, बहकावे या छलावे मैं आकर अपनी मर्यादा का उल्लंघन कभी नहीं करना चाहिए। मर्यादा की लक्ष्मण रेखा पार करते ही रावण सीता पर भारी पड़ गया।

उसने कहा भी कि — स्त्री अगर एक बार अपनी मर्यादा की रेखा से बाहर आ जाए तो फिर उसका वापस जाना असंभव हो जाता है।

सीता जी का स्वर्णमृग के लिए लोभ
लक्ष्मण जी पर किया गया क्रोध
और लक्ष्मण द्वारा खींची गई मर्यादा रेखा का उल्लंघन

उनके अपहरण का कारण बना।