बहुत ज़रूरी है रिश्तों में समर्पण और सहनशीलता

आज के दौर में बहुत कुछ बदल गया है. समय और परिस्थिति के हिसाब से इंसान की आवश्यकताओं का दायरा बड़ा है, तो रिश्तों में बहुत कुछ सिमट गया है. इंसान के पास इतना वक़्त ही नहीं होता, कि वो अपने जीवनसाथी के साथ रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ अच्छे पल बिताये, फिर वो इसकी भरपाई करने की कोशिश करता है. इसके लिए साल में से एकाध हफ्ते का समय निकालकर सपरिवार कहीं घूमने का प्लान बनाकर इंसान संतुष्ट हो जाता है, कि उसने कम से कुछ तो ऐसा किया जो उसके परिवार के लिए था. लेकिन सच कहा जाए तो दिल बहलाने के लिए ये खयाल बहुत अच्छा है. परिवार के लिए प्यार, अपनानापन और समय सबकुछ ज़रूरी है, लेकिन उससे ज्यादा ज़रूरी है एक दूसरे के बीच में सामंजस्य, एक दूसरे की भावनाएं समझने की ज़रूरत. और खासकर पति पत्नी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. विवाह एक ऐसा पवत्र बंधन होता है, जिसमें मर्यादा, अनुशासन, कर्तव्य, सहनशीलता, धैर्य सब कुछ समाहित है. एक दूसरे के जीवन के लिए समर्पित पति पत्नी का रिश्ता दायित्व निर्वाह करने की प्रेरणा देता है, जीवन को एक उचित उद्देश्य देता है. हालांकि आज के दौर में छोटी छोटी बातें भी कटुता की वजह बन जातीं हैं, इससे यह समझ में आता है कि, इस रिश्ते में वो समर्पण या सहनशीलता नहीं है, जो इंसान को बांधकर रख सके. वैवाहिक बंधन को किस तरह सहेजकर रखा जा सकता है. विवाह केवल एक परस्पर रिश्ता नहीं बल्कि हमें ये सिखाता है कि, पति पत्नी को सुख और दुःख दोनों ही अवस्था में एक दूसरे के साथ रहना चाहिए. विवाह हमें त्याग और समर्पण की भावना भी सिखाता है.
विश्वास, निस्वार्थ प्रेम, अपनापन, एक दूसरे के प्रति इमानदारी, ये सारी बातें वैवाहिक रिश्तों को मजबूती देती हैं. सारी समस्याए अहंकार के भाव से उत्पन्न होतीं है, और पति पत्नी तो एक दूसरे के लिए ही अपना जीवन समर्पित करते हैं, फिर वहां कैसा अहंकार, इसलिए छोटी छोटी बातों को जीवन में बड़ी वजह नहीं बनाना चाहिए. तभी एक वैवाहिक रिश्ता सफल हो सकता है.