भगवान श्रीकृष्ण स्वर्ग से लाए थे यह पौधा

पेड़-पौधों में रुचि रखने वाले लोग तो पारिजात के बारे में जानते ही हैं लेकिन हाल ही में यह पौधा तब चर्चा में आया जब अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के भूमिपूजन के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने पारिजात का पौधा रोपा। पारिजात को बोलचाल में हरसिंगार भी कहा जाता है, आयुर्वेद के नजरिए से भी यह बहुत उपयोगी पेड़ है। इसके फूल से लेकर छाल व पत्ते तक उपयोगी हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह मूल रूप से धरती का नहीं है बल्कि स्वर्ग से लाया गया है। इसे भगवान श्रीकृष्ण, पत्नी सत्यभामा के कहने पर धरती पर लाए थे।

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वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे पहले अपनी पत्नी देवी रुक्मिणी को पारिजात के फूल भेंट किए थे, जिन्हें उन्होंने अपने बालों में सजा लिया था। रुक्मिणीजी के बालों में इतने सुंदर फूल देखकर सत्यभामाजी पारिजात के वृक्ष की मांग करने लगी, ताकि उन्हें इसके फूल रोज ही मिल सकें। यह मांग इतनी प्रबल थी कि भगवान श्रीकृष्ण पारिजात का पौधा धरती पर ले आए थे।

समुद्र मंथन में निकला था-
विष्णु पुराण के अनुसार पारिजात का पौधा समुद्र मंथन के समय निकला था। देवराज इंद्र ने इसे स्वर्ग में लगा दिया था। पारिजात के फूल का पूजा में विशेष महत्व है। धन की देवी लक्ष्मीजी को पारिजात के फूल बहुत प्रिय हैं, क्योंकि लक्ष्मीजी की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन से ही हुई थी।

उत्तरप्रदेश से पहुंचा द्वारिका-
कहा जाता है देवराज इंद्र ने यह पौधा आज के उत्तरप्रदेश के किंतूर गांव में लगाया था, जो बाद में गुजरात के द्वारिका तक पहुंचा। एक बार कुंती ने भगवान शंकर की पूजा के लिए अपने पुत्र अर्जुन से भी पारिजात पुष्प मंगवाए थे। इस पर अर्जुन पूरा पेड़ ही उठा लाए थे। हरसिंगार एकमात्र ऐसा पेड़ है, जिसके झरे हुए फूल भी पूजा में इस्तेमाल होते हैं। ऐसा किसी और फूल के साथ नहीं होता।

हनुमानजी का वास-
धार्मिक मान्यता के अनुसार, हरसिंगार के पेड़ पर हनुमानजी वास करते हैं। हरे पत्ते, सफेद व खुशबूदार फूलों वाले इस वृक्ष को कूरी, सिहारु, सेओली नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद के हिसाब से भी पारिजात का बहुत महत्व है। सदियों से इसकी छाल, जड़ व फूलों का इस्तेमाल औषधियां बनाने के लिए होता आ रहा है। आयुर्वेद के अनुसार हरसिंगार के फूल सूंघने से किसी भी तरह का तनाव दूर हो जाता है।

रात में ही खिलते हैं फूल-
ऊपर से सफेद रंग और नीचे से चटख नारंगी रंग के पारिजात के फूलों की खासियत है ये रात में ही खिलते हैं और सुबह तक झर जाते हैं। अत्यंत खुशबू वाले ये फूल पश्चिम बंगाल में अधिक पाए जाते हैं। इंद्र नहीं चाहते थे पारिजात धरती पर जाए लेकिन श्रीकृष्ण को मना भी नहीं कर सकते थे। जब श्रीकृष्ण पारिजात लेकर आने लगे तो इंद्र ने कह दिया था कि धरती पर इसके फूल रात में ही खिलेंगे और सुबह तक झर जाएंगे।

देवी सीता से नाता-
पारिजात के फूलों से माता सीता का भी नाता रहा है। उन्हें ये फूल बहुत पसंद थे, इसीलिए वे वनवास में अपने केश पारिजात के फूलों से सजाया करती थीं। इसलिए इसका नाम हार शृंगार पड़ा, जो बोलचाल में बदलते हुए हरसिंगार हो गया।

भारतीय संस्कृति में पेड़- पौधों का बहुत महत्व है, दुनिया में ऐसा कोई पेड़-पौधा नहीं है जिसमें कोई विशेषता न हो। किसी में औषधीय गुण हैं तो किसी में सुंदरता अधिक है, लेकिन स्वर्ग से आया पारिजात गुणों से भरपूर है। पूजा में सबसे ज्यादा उपयोगी होने के साथ ही यह सुंदर भी है, दिव्य भी है और औषधीय भी है।