प्राचीन भारत के राजसी घरानों के गवाह किले लोगों के आकर्षण का केंद्र हमेशा से ही रहे हैं। यह देखने में आया है कि पुराने जमाने में ये किले पहाड़ी या नदी किनारे बनाए जाते थे। ऐसा ही है कर्नाटक का प्रसिद्ध श्रीरंगपट्टनम किला, जो कि पवित्र नदी कावेरी के नजदीक बना है। यह किला कर्नाटक के प्रमुख स्मारकों में से एक है। यह सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है।
श्रीरंगपट्टनम प्राचीन काल से ही एक बड़ा नगर और तीर्थ स्थल रहा है। विजयनगर साम्राज्य में यह राजनीति का एक मुख्य केंद्र बन चुका था, यहां से आसपास के रजवाड़ों जैसे मैसूर और तालकाड़ पर नजर रखी जाती थी। जब विजयनगर साम्राज्य पतन के रास्ते पर था, तब मैसूर के रजवाड़ों ने आजादी की ओर कदम बढ़ाया और श्रीरंगपट्टनम को अपना पहला निशाना बनाया। वाडियार राजा ने रंगराया को परास्त किया, जो श्रीरंगपट्टनम में 1610 तक शासक थे। इसके बाद राजा ने नगर में नवरात्र पर्व धूमधाम से मनाकर धर्म और संस्कृति को बढ़ावा दिया।
श्रीरंगपट्टनम, मैसूर राज्य के हिस्से के रूप में सन 1610 से लेकर 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद तक रहा है। यहां का किला राजधानी मैसूर के पास ही था, इसलिए उसे शत्रु के किसी भी वार की स्थिति में बचाव के अंतिम गढ़ के रूप में माना जाता था। श्रीरंगपटना द्वीप से बेंगलुरू की दूरी 140 किलोमीटर एवं मैसूर की दूरी मात्र 15 किलोमीटर है।
श्रीरंगपट्टनम का किला 1537 में सामंत देवगौड़ा ने बनवाया था। यह कावेरी नदी के बीच एक उपद्वीप पर बना है। यह भारतीय वास्तुकला का बेजोड़ उदाहरण है। इस किले के चार प्रवेशद्वार-दिल्ली, बेंगलुरू, मैसूर तथा जल या गज हैं। किले में सुरक्षा के नजरिये से दोहरी दीवारें हैं। किले का मुख्य आकर्षण इसका प्रवेश द्वार है जिस पर किले की स्थापना तिथि की नक्काशी पारसी में की गई है। किले की दीवारों पर सुंदर व सौम्य चित्रकला भी देखी जा सकती है। इस किले में चतुर्विमसति स्तंभ हैं, जिन पर भगवान विष्णु के 24 अवतार अंकित हैं। किले के निचले कक्ष में एक काल- कोठरी है, जिसका प्रयोग अंग्रेज जेल के रूप में करते थे।
इस किले ने अपने इतिहास में कई आक्रमण सहे हैं और कई शासकों का कार्यकाल देखा है। वर्ष 1799 में अंगेजों से लड़ाई के दौरान ब्रिटिश सेना द्वारा इस किले को काफी नुकसान पहुंचाया गया था। इस किले के अंदर बना श्रीरंगनाथस्वामी मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय का केंद्र माना जाता है। इस मंदिर की विशेषता है कि यह कावेरी नदी के तीन द्वीपों पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण वैष्णवत्व दर्शन के समर्थक रामानुजाचार्य द्वारा किया गया था। इस तरह यह किला इतिहास का गवाह होने के साथ ही वैष्णव संप्रदाय के बड़े केंद्र के रूप में भी पहचान रखता है, इसीलिए यहां इतिहास प्रेमियों के साथ ही वैष्णव संप्रदाय के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में आते हैं।