ये भारत की धरती है. यहाँ का इतिहास, संस्कृति, शिक्षा पद्धति दुनिया में सबसे अलग और ख़ास है. दुनिया का स्वरूप भले ही बहुत बदल चूका हो, लेकिन भारतवर्ष की पहचान आज भी पुण्य भूमि के रूप में ही बनी हुई है. यहाँ की शिक्षा पद्धति तो सदैव से बेमिसाल रही है. भारत के इतिहास में शिक्षा के कई प्रमुख केंद्र रहे हैं, लेकिन इनमें सबसे ज्यादा प्रसिद्ध था, तक्षशिला विश्वविद्यालय. तक्षशिला प्राचीन भारत में गांधार देश की राजधानी भी रहा और यह विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में शामिल है. यहां का वैभव और शिक्षा का स्तर दुनियाभर में चर्चित था और शिक्षा तथा राजनीति को नई दिशा देने वाले चाणक्य यहां के आचार्य थे. इसका संबंध भगवान श्रीराम से भी जुड़ा है, क्योंकि उनके भाई भरत के पुत्र तक्ष ने तक्षशिला नगरी बसाई थी. पाली भाषा में इसका उच्चारण तक्कसिला किया जाता था.
तक्षशिला के खंडहरों को सन् 1980 से यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है। वर्ष 2010 की एक रिपोर्ट में विश्व विरासत फंड ने इसे उन 12 स्थलों में शामिल किया है जो अपूरणीय क्षति होने की स्थिति में है. अब तक्षशिला पाकिस्तान के पंजाब राज्य के रावलपिंडी जिले में है. प्राचीन तक्षशिला के खंडहरों को खोज निकालने के प्रयास कई बार हुए, लेकिन ठोस काम सन् 1912 के बाद भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से किया गया और कई स्थानों पर बिखरे हुए अवशेष खोद निकाले गए.
तक्षशिला गांधार की राजधानी रहा और इसका संकेत ऋग्वेद में भी मिलता है, किंतु तक्षशिला की एकदम स्पष्ट जानकारी प्राचीन ग्रंथों में सबसे पहले वाल्मीकि रामायण में मिलती है. अयोध्या के राजा भगवान श्री रामचन्द्र की विजय पताकाओं के उल्लेख के बीच पता चलता है कि उनके छोटे भाई भरत ने अपने नाना केकयराज अश्वपति के आमंत्रण पर उनकी सहायता से गंधर्वों के देश (गांधार) को जीता और अपने दो पुत्रों को वहां का शासक नियुक्त किया. गंधर्व देश सिंधु नदी के दोनों किनारे स्थित था और उसके दानों ओर भरत के तक्ष और पुष्कल नामक दोनों पुत्रों ने तक्षशिला और पुष्करावती नाम से अपनी-अपनी राजधानियां बसार्इं. तक्षशिला सिंधु के पूर्वी तट पर थी। उन रघुवंशी क्षत्रियों के वंशजों ने तक्षशिला पर बरसों तक शासन किया. इसके बाद महाभारत युद्ध में राजा परीक्षित के वंशजों की कुछ पीढ़ियों तक वहां शासन करने का उल्लेख मिलता है. यह भी उल्लेख है कि राजा जनमेजय ने अपना नागयज्ञ यहीं किया था.
यह दुनिया का पहला विश्वविद्यालय था, जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी. विशेष बात यह भी है कि जब संसार में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला आयुर्वेद का सबसे बड़ा केंद्र था. यहां 12 वर्ष तक अध्ययन करने के बाद दीक्षा मिलती थी. तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के साढ़े 10 हजार से अधिक छात्र एक साथ अध्ययन करते थे. यहां छात्र की रुचि और योग्यता के अनुसार अध्ययन कराया जाता था. यहां वेद-वेदांग, अष्टादश विद्याएं, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्धविद्या, शस्त्र-संचालन, ज्योतिष, आयुर्वेद, ललित कला, हस्त विद्या, अश्व-विद्या, मंत्र-विद्या, विविध भाषाएं, शिल्प सहित 60 से भी अधिक विषय पढ़ाए जाते थे. प्राचीन भारतीय साहित्य में पाणिनी, चाणक्य (कौटिल्य), चंद्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित जैसे विद्वानों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की. सबसे अहम बात यह भी थी कि तक्षशिला विश्वविद्यालय में न तो विद्यार्थियों से कोई शिक्षा शुल्क लिया जाता था और न ही शिक्षक- आचार्य वेतन पर नियुक्त थे. आजकल की तरह पाठयक्रम की भी कोई समय-सीमा तय नहीं थी और न कोई प्रमाणपत्र या उपाधि दी जाती थी. इस प्रकार जीवनोपयोगी शिक्षा प्राचीन विश्वविद्यालयों में दी जाती थी और शिक्षा के बाद व्यक्ति के आचार-व्यवहार से उसकी शिक्षा का पता चल जाता था.