वैसे तो भारतवर्ष की धरती पर एक से बढ़कर एक महान और वीर योद्धाओं का जन्म हुआ, और उन्होंने इस देश की मिट्टी को हमेशा गौरवान्वित किया. लेकिन कुछ ऐसे योद्धा भी हैं, जो अपने जीवन काल में कभी कोई युद्ध नहीं हारे, बल्कि जो उनके सामने आया उन्हें मुँह की खानी पड़ी.
ऐसे ही एक महान और वीर योद्धा थे राजा समुद्रगुप्त. कहते हैं उन्होंने अपने जीवन में कभी पराजय का मुँह नहीं देखा था. वो राजा चन्द्रगुप्त प्रथम के पुत्र और उनके उत्तराधिकारी भी थे. राजा चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने कई पुत्रों में समुद्रगुप्त को ही अपना उत्तराधिकारी चुना था, क्योंकि वो बहुत वीर योद्धा थे, और उनमें राजा बनने के सभी गुण थे, लेकिन राजा समुद्रगुप्त के अन्य भाइयों को अपने पिता का ये फैसला अच्छा नहीं लगा, और वो उनके विरोधी बन गए.
राजा बनने के बाद समुद्रगुप्त ने अपनी वीरता की कहानी लिखना शुरू कर दिया था. पूरी दुनियां के इतिहास में वो आज तक सबसे सफल सेना नायक और सम्राट माने जाते हैं. गुप्त राजवंश के इस चौथे शासक का साम्राज्य बहुत दूर तक फैला था, और उनकी राजधानी थी पाटलिपुत्र. उनका शासनकाल भारत के स्वर्णिम युग की शुरुआत माना जाता है.
वैदिक धर्म का पूरी तरह पालन करने वाले इस महान शासक के ऊपर माता लक्ष्मी और सरस्वती की पूरी कृपा थी. ऐसा कोई भी सद्गुण नहीं है जो उनमें न रहा हो. सैकड़ों देशों पर विजय प्राप्त करने की उसकी क्षमता अपूर्व थी. स्वयं का अपार बल ही उनकी बड़ी पहचान थी, जिस पर उन्हें बहुत भरोसा था. उन्होंने आर्यावर्त से लेकर दक्षिणापथ, तक कई ऐसे विजय अभियान चलाए, जिससे पूरे देश के राजा उनके अधीन हो गए, और सम्पूर्ण भारत में उनका साम्राज्य हो गया. उसके बाद उन्होंने सीमावर्ती देशों की तरफ रुख किया और अफगानिस्तान मध्य एशिया और पूर्वी इरान को भी अपने अधीन कर लिया.
समुद्रगुप्त का साम्राज्य पश्चिम में गांधार से लेकर पूर्व में आसाम तक तथा उत्तर में हिमालय के कीर्तिपुर जनपद से लेकर दक्षिण में सिंहल तक फैला हुआ था. लगभग 51 सालों तक सफल शासक के रूप में पूरी दुनियां में उनकी धाक हो गई थी. इसके अलावा वो एक बहुत ही प्रखर कवि भी थे. और वैदिक धर्म को पूरी तरह मानते थे.