भविष्य पुराण – ‘उत्पत्ति, विकास और विनाश का पूरा विवरण

भविष्य पुराण में मानव धर्म, मानव जीवन के दैनिक आचार विचार एवं पारस्परिक व्यवहार के लिए उचित कर्म नियम और दिशा निर्देश का वर्णन है। बहु प्रचलित ‘विक्रम बेताल’ की कथा, सामुद्रिक विज्ञान, भविष्य में होने वाली लगभग सभी घटनाओं का वर्णन, ईसा और इस्लाम के लक्षण, इनके उद्भव, इनका विस्तार और इनके विनाश का पूरा विवरण भविष्य पुराण में मिलता है। इस पुराण में भारतवर्ष सहित संपूर्ण धरती का संपूर्ण इतिहास, भूगोल और भविष्य लिखा हुआ है। इसमें सांकेतिक रूप से मध्यकालीन शासकों का पूरा वर्णन देखा जा सकता है। हर्षवर्धन आदि हिंदू राजाओं से लेकर मुगलकालीन आक्रमणकारियों तथा आतंकवादी गतिविधियों का स्पष्ट विवरण भविष्य पुराण में उपलब्ध है।
कर्मकांड, व्रत, दान आदि का इतना विस्तार से वर्णन किसी और पुराण में नहीं है जितना भविष्य पुराण में है।

सूर्य भगवान की महिमा, उनकी उत्पत्ति, उनके स्वरूप और उनकी पूजा उपासना की विधियों का वर्णन विस्तार के साथ भविष्य पुराण में है इसीलिए वप।

पौराणिक मान्यता के अनुसार भविष्य पुराण में लगभग पचास हजार (50000) श्लोक हैं परंतु वर्तमान में मात्र चौदह (14000) श्लोक ही उपलब्ध हैं। भविष्य पुराण में कुल चार सौ पचासी (485) अध्याय हैं जो चार भागों –
ब्रह्म पर्व, मध्यम पर्व, प्रतिसर्ग पर्व तथा उत्तर पर्व में संग्रहीत हैं।

ब्रह्म पर्व- भविष्य पुराण के ब्रह्म पर्व में कुल दो सौ पन्द्रह (215) अध्याय हैं जिनमें से एक सौ उनहत्तर (169) अध्याय भगवान सूर्य से संबंधित हैं। ब्रह्म पर्व के प्रारंभ में महर्षि सुमंतु और महाराज शतानीक का संवाद है। इस पर्व में व्रत, उपवास, पूजा विधि, सूर्य की उपासना विधि और सूर्य महिमा वर्णित है। पुराण के इसी पर्व के कारण भविष्य पुराण को ‘सौर पुराण’ भी कहते हैं।

मध्यम पर्व- इस पर्व में कर्मकांड, नित्य कर्म, दान आदि के स्वरूप, नियम और महत्व का वर्णन है। वर्तमान में व्रत परिचय के जितने भी ग्रंथ जैसे – हेमाद्रि, व्रत कल्पद्रुम, व्रत रत्नाकर, व्रतराज आदि उपलब्ध हैं ये सभी भविष्य पुराण के मध्यम पर्व से ही लिए गए हैं। इस पर्व में मुख्य रूप से विवाह संस्कार, श्राद्ध कर्म, पितृ कर्म, प्रायश्चित, अन्नप्राशन आदि कर्मकांडों का विस्तार से वर्णन है।

प्रतिसर्ग पर्व – ब्रह्म पुराण का यह तीसरा पर्व चार खंडों में बटा हुआ है जिनमें इतिहास की अनेकानेक घटनाओं और कथाओं का वर्णन है। भविष्य की अनेकानेक घटनाएं पहले से ही इस में वर्णित हैं। द्वापर युग के चंद्रवंशी राजाओं का वर्णन, महाराजा हर्षवर्धन का वर्णन, कलयुग में होने वाले राजाओं का वर्णन, बौद्धों का वर्णन, चौहान एवं परमार वंश के राजाओं का संकेतिक वर्णन साथ ही ईसा का जन्म,उनकी भारतवर्ष यात्रा, इस्लाम का उदय- प्रभाव -विस्तार और विनाश आदि भविष्य पुराण के इस तीसरे सर्ग में पहले से ही लिखा हुआ है।

उत्तर पर्व- उत्तर पर्व में 208 अध्याय हैं जिनमें भगवान विष्णु की माया से नारद जी के मोहित होने की कथा का विस्तार से वर्णन है। स्त्रियों को सुख सौभाग्य प्रदान करने वाले अनेकानेक व्रतों, उपवासों का वर्णन है। भविष्य पुराण का यह उत्तर पर्व स्वयं में इतना संपूर्ण और बड़ा है कि इसे एक स्वतंत्र पुराण ‘भविष्योत्तर पुराण’ भी कहा जाता है।

सारांशतः भविष्य पुराण हमें हमारे गौरवशाली सनातन इतिहास का दर्शन और आभास कराता है साथ ही आगामी भविष्य का भी स्पष्ट संकेत देता है।
ॐ तत्सत