यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कहा गया ये श्लोक समस्त संसार में जीवन का सार है. मनुष्य केवल इस एक शब्द का शाब्द्क मर्म समझ ले तो जीवन में हर कठिनाई से पार सकता है. और सम्पूर्ण गीता में जो ज्ञान है, उसमें जीवन की हर कठिनाई का समाधान है. इस बात को हमारे देश ने तो नहीं लेकिन अमेरिका के एक विश्वविधालय ने बखूबी समझा है, और अपने गीता को पाठ्यक्रम में शामिल कर अनिवार्य विषय किया है. जब विदेश में भी श्रीमद् भगवद्गीता को अनिवार्य किया है तो भारत में भी ऐसा अवश्य होना चाहिए.
क्योंकि गीता एक ऐसा ग्रन्थ है, इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने जीवन से जुड़े उपदेश दिए हैं. इसमें परमात्मा की शक्ति को बताया गया है. गीता को स्कूल व कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल नहीं करने से लोग और हमारी आने वाली पीढ़ी जो पूरी तरह इन्टरनेट की दुनिया में उलझ गई है, वो इस ज्ञान से वंचित हो रही है. जानकारी के अनुसार इसी के चलते गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग को लेकर संभवतः पहली बार देश के किसी हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. याचिकाकर्ताओं की ओर से कई वरिष्ठ अधिवक्ता इसकी पैरवी कर रहे हैं.
याचिका में इस ग्रंथ को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करने के उपरांत कॉलेज में शोध का विषय बनाने की मांग की गई है. इसी याचिका में ये बताया गया है कि, अमेरिका के एक विश्वविद्यालय ने गीता को पाठ्यक्रम में शामिल कर अनिवार्य विषय किया है. जब विदेश में भीमद् भगवद् गीता को अनिवार्य किया है तो भारत में भी होना चाहिए. हालाँकि इस मामले में सुनवाई चल रही है, क्योंकि ये बात बीते महीने यानि जनवरी की है. याचिकाकर्ताओं की ओर से श्रीमद् भगवद्गीता की प्रति, उसके उद्देश्य सहित अन्य दस्तावेज प्रस्तुत किया गया है.