भारत देश की धरती भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण और देवी – देवताओं की धरती है. यहाँ के हर स्थान से ईश्वर किसी न किसी रूप से जुड़े हुए हैं. पूर्व से लेकर, और उत्तर से लेकर दक्षिण तक मानव रूप लेकर भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने हर जगह भ्रमण किया था. और बाद में उनके वंशज चारों तरफ जाकर बस गए, और जहाँ जहाँ वह रहे उस स्थान पर नए नए नगर बसते चले गए.
इसी तरह राजस्थान की राजधानी जयपुर की उपनगरी आमेर नगर से भगवान श्रीराम के पुत्र कुश का सम्बन्ध रहा है. वैसे तो इस नगर को बसाने का श्रेय मीणा राजा आलन सिंह को जाता है, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण बात है कि यहां के राजपूत खुद को भगवान श्रीराम के पुत्र कुश के वंशज मानते हैं. इसी कारण उन्हें कुशवाहा उपनाम मिला, जो बाद में कछवाहा हो गया. यहां के अधिकांश लोग अपने वंश का मूल अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के विष्णु भक्त राजा अम्बरीष के नाम से जोड़ते हैं. राजा अम्बरीष ने दीन-दुखियों की सहायता हेतु अपने राज्य के भंडार खोल रखे थे. यही विशेषता कछवाहा राजाओं में भी रही. आमेर किला कभी कछवाहा राजपूत राजाओं की राजधानी हुआ करती थी, लेकिन जयपुर नगर बसने के बाद उसकी राजधानी जयपुर बन गई. यहां किले का निर्माण बाद में सन् 1558 से 1592 के बीच कछवाहा राजपूत मान सिंह प्रथम ने कराया. आंबेर या आमेर नाम यहां स्थित चील के टीले नामक पहाड़ी पर स्थित अम्बिकेश्वर मंदिर के आधार पर रखा गया. अम्बिकेश्वर नाम भगवान शिव के उस रूप का है, जो इस मंदिर में स्थित है, अर्थात अम्बिका के ईश्वर.
इसी प्रकार आमेर स्थित संघी जूथाराम मंदिर में मिले राजा जयसिंह काल के विक्रम संवत् 1714 यानी सन् 1657 के शिलालेख के अनुसार आमेर को अम्बावती नाम से ढूंढाड़ क्षेत्र की राजधानी बताया गया है. यह शिलालेख राजस्थान के संग्रहालय में आज भी देखा जा सकता है.