श्रीराम और उनके भाइयों का सम्पूर्ण जीवन है त्याग की बेमिसाल कहानी

‘यूँ तो सब कुछ उस पिता का ही था, जिसने उसे जन्म दिया, लेकिन फिर भी करोड़ों के साम्राज्य के मालिक उस पिता को, उसके ही इकलौते बेटे ने दर बदर कर दिया, और उम्र के अंतिम पड़ाव में वो सर पर छत के लिए भी तरस गया, फिर अदालत के चक्कर लगाकर अपनी ही औलाद से उसी प्रॉपर्टी में हिस्सा मांगने की गुहार करने लगा, जो उसकी अपनी अपनी थी, और दूसरी तरफ अरबों की संपत्ति पर अधिकार की लड़ाई में दो सगे भाइयों में ऐसी दुश्मनी हुई कि, उसकी कीमत दोनों को अपनी जान गंवाकर अदा करनी पड़ी, अहम् और वर्चस्व की लड़ाई में अपनों के द्वारा अपनों की जान लेने की कई कहानियों से दुनियांभर का इतिहास भरा पड़ा है, और आये दिन इस तरह की घटनाएं अक्सर सुनने या देखने को मिलती हैं, लेकिन दूसरी तरफ इसी देश में त्याग और बलिदान के ऐसे किस्से हैं, जो हजारों सालों से आज तक धरती पर इंसानियत की मिसाल हैं|ImageSource

जैसे रामायण में अयोध्या जैसे वैभवशाली साम्राज्य को अस्वीकार करते हुए, भरत अपने भाई श्रीराम से कहते हैं कि, आप बड़े हैं इसलिए, राजसिंहासन पर आपका ही अधिकार है, लेकिन रामजी ने उन्हें समझाया कि, जिस वचन के लिए हमारे पिताश्री महाराज दशरथ ने अपने प्राण तक त्याग दिए, इसलिए धर्म का पालन करने के लिए तुम्हें ही इस राज्य का राजा बनना होगा, पर दोनों में से कोई भी सत्ता लेने को तैयार नहीं होता, और अंत में  श्रीराम की चरण पादुका लेकर भरत अयोध्या लौट जाते हैं, और 14 वर्ष तक उनकी पूजा करते हुए, रामजी के प्रतिनिधि बनकर राज्य सम्हालते हैं| जब भी इस दुनियां में भाइयों के प्रेम की कोई कहानी सामने आती है, तो श्रीराम और भरत उस कहानी के सबसे बड़े नायक होते हैं|

लेकिन आज ज़्यादातर रिश्तों में, त्याग तो छोड़िये प्रेम की भावना भी बहुत कम देखने को मिलती है, आये दिन राजनैतिक बर्चस्व की लड़ाई में परिवार के लोग ही एक दूसरे को सत्ता से बेदखल कर देते हैं, कभी किसी का पुत्र मोह आगे आकर असली हक़दार और काबिल उत्तराधिकारी को छोड़कर, अपने बेटे को सत्ता पे काबिज कर देता है, जैसा महाभारत में हुआ था, तो कभी बेटा, अपने पिता को ज़बरन सत्ता से बेदखल कर देता है, हालांकि संपन्न परिवारों में ही ऐसे किस्से ज्यादा सुनने को मिलते हैं|ImageSource

लेकिन एक बड़ा सच ये भी है कि, आज भी ये दुनियां रिश्तों में भरोसे, और प्यार के बलबूते पर ही चलती है, तभी तो देश और दुनियां में विपत्ति के वक़्त बड़े बड़े दानवीर सामने आते हैं, और दिल खोलकर अपनी सम्पत्ति का दान करते हैं, जो एक तरह से त्याग का ही रूप है, परोपकार की इसी भावना के चलते बीते दिनों कोरोना वायरस के साथ देश की लड़ाई में अपना योगदान देते हुए, सीमा पर जान गँवा चुके एक सैनिक की पत्नी ने दो लाख रुपये पीएम केयर्स फंड में दान किए हैं, जो देशप्रेम और त्याग की बड़ी मिसाल है|

तो हमें करना क्या चाहिए?

सबसे पहले हमें लालच और स्वार्थ से ऊपर उठकर, खुद से ज्यादा दूसरों की सुख सुविधा और अधिकारों का ध्यान रखना चाहिए| हर इंसान अगर अपने अधिकारों से पहले अपने कर्तव्यों के बारे में सोचने लगे, और एक दूसरे से सच्चा प्रेम करने के साथ ही, अपनों के लिए त्याग करना सीख ले, तो संसार की बहुत सारी समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाएँगी|
रामायण भी हमें त्याग और परोपकार की यही सीख देती है|