भारत के गौरवशाली किले: राजसी ठाट-बाट का प्रतीक है रणथंभौर का किला

हमारे भारत देश में अधिकतर किलों का ऐतिहासिक महत्व है, लेकिन कई किले ऐसे भी हैं जिसका इतिहास से कहीं अधिक धर्म से संबंध जुड़ा हुआ है। इसी तरह का किला है राजस्थान का रणथंभौर का किला। यह सवाई माधोपुर शहर के निकट रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के भीतरी इलाके में है। इसे राजस्थान के समूह हिल किलों के तहत यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में भी शामिल किया गया है। इस किले का धार्मिक महत्व इसलिए है कि इसके अंदर भगवान गणेश, शिवजी और रामजी को समर्पित तीन मंदिर हैं, जो कि लोगों की श्रद्धा के केंद्र हैं और यहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं।

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रणथंभौर का किला चौहान शाही परिवार से संबंध रखता है। यह किला बारहवीं शताब्दी से अस्तित्व में है और यह उन लोगों के लिए एक खास जगह है जो राजस्थान का राजसी ठाठ-बाट देखना चाहते हैं। रणथंभौर नेशनल पार्क के घने जंगलों में कभी राजघराने के सदस्य शिकार करते थे। अब पार्क का रिजर्व क्षेत्र कई तरह के जानवरों और पक्षियों का घर है। रणथंभौर किला बड़ी- बड़ी दीवारों से घिरा हुआ है, जिसमें पत्थर के मजबूत मार्ग और सीढ़ियां हैं, जो किले में ऊपर जाने के लिए हैं। इस किले के बड़े दरवाजे, स्तंभ और गुंबदों वाले कई महल और मंदिर हैं। यहां राजस्थानी वास्तुकला सैलानियों को अपनी तरफ आकर्षित करती है।

वास्तव में इस दुर्ग का निर्माण रणथम्मनदेव ने करवाया था और उसके बाद से उनके कई उत्तराधिकारियों ने रणथंभौर किले के निर्माण की दिशा में योगदान दिया। किले का निर्माण दसवीं शताब्दी में शुरू हुआ था। बाद में चौहान शाही परिवार ने किले का शेष निर्माण पूरा किया था। जब चौहानों ने किले का प्रबंध किया तब इस किले को रणस्तंभ के नाम से जाना जाता था। पृथ्वीराज चौहान प्रथम के शासनकाल के बाद इस किले पर कई आक्रामणकर्ताओं ने अधिकार किया, लेकिन चौहानों ने 1236 में फिर से किले पर कब्जा कर लिया। सन 1283 में जैतसिंह चौहान के उत्तराधिकारी शक्ति देव ने किले को जीत लिया और इसके बाद राज्य का विस्तार भी हुआ। 1301 में किला फिर से आक्रमणकारियों के हाथों में चला गया था। राजस्थान में दो पहाड़ियों पर बना ये किला यहां की आन-बान-शान का प्रतीक है। यह किला बहुत खूबसूरत और विशाल है। यह ऐसी जगह पर बना हुआ है जहां तक दुश्मन का पहुंच पाना मुश्किल था। कई राजा-महाराजा और शासकों ने किले पर आक्रमण की कोशिशें की थीं लेकिन सभी विफल रहे।

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किले के अंदर भगवान शिवजी, गणेशजी और रामजी के मंदिर भी बने हुए हैं, लेकिन सबसे ज्यादा मशहूर है त्रिनेत्र गणेश मंदिर है। हर साल भाद्रपद के महीने में गणेश चतुर्थी के मौके पर 5 दिनों का विशाल मेला लगता है। जिसमें शामिल होने दूर-दूर से लोग आते हैं, लेकिन इस बार कोरोना काल के चलते यह मेला नहीं लगा। किले में मौजूद पुष्पवाटिका, गुप्तगंगा, बादल महल, दिल्ली दरवाजा, तोरणद्वार, नौलखा दरवाजा आदि का अपना अलग ही रोचक इतिहास है। सवाई माधो सिंह ने इस किले के पास के गांव का विकास किया और इस किले को और भी मजबूत कर दिया था। उन्होंने इस गांव का नाम बदलकर सवाई माधोपुर रखा। यह किला आज भी अपनी गौरव पताका फहरा रहा है। यहां आकर लोग अपना इतिहास और सनातन धर्म की संस्कृति से परिचित होते हैं।