पितृपक्ष का प्रारम्भ हो चुका है. सनातन धर्म में हर संस्कृति और काल की कोई ना कोई ख़ास बात है. इन दिनों पितृपक्ष का समय चल रहा है. यही वो समय है जब मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष कर्मकांड किए जाते हैं. श्राद्ध पक्ष में लोग दिल खोलकर दान पुण्य करते हैं. माना जाता है श्राद्ध पक्ष के दौरान किए गए दान-पुण्य पितरों तक पहुंचते हैं और परिवार वालों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. अगर किसी की कुंडली में पितृ दोष है तो श्राद्ध पक्ष के दौरान इसके निदान हेतु किए गए उपाय विशेष रूप से फलदायी साबित होते हैं.पितृ पक्ष पितृदोष दूर करने और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. अगर पितरों का किसी कारणवश श्राद्ध नहीं कर पाते तो उनकी आत्मा को शांति नहीं मिल पाती. इसी वजह से पितरों को तर्पण का बहुत महत्व है.
पितृपक्ष मनुष्य के जीवन में शांति का प्रतीक है. जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं. तो वो हमारे कर्मों का लेखा जोखा देखने के लिए आते हैं. हमें समझाते भी हैं, कि सबसे ज्यादा ज़रूरत केवल शांति और धैर्य की होती है. अगर हम अपने जीवन में शांति का मार्ग अपना लेते हैं तो हमारे कार्य भी आसान हो जाते हैं. हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद तो सदैव हमारे साथ ही होता है. लेकिन हमें भी ये ध्यान रखना होता है, कि अपने किसी भी कार्य से हम कभी उन्हें नाराज़ नहीं करें. और कभी उन्हें भूलें नहीं. उनका, हमारे साथ होने का मतलब ही तो है पितृपक्ष. वो हमें भरोसा दिलाते हैं कि, थोड़ा ठहरकर अपने बारे में भी सोचो, और कर्मों में इतनी नेकी लेकर आना ताकि जीवन सरल हो जाए. पितृपक्ष का महत्व इसलिए भी होता है कि, हम इन दिनों में दान पुण्य से अपने कर्मों को सुधारते हैं. जाने अनजाने में हमसे जो गलतियाँ होतीं है, हमारे पूर्वज हमें उसके लिए क्षमा दान देते हैं. इसलिए इस समय अपने सभी पूर्वजों का स्मरण करके ईश्वर का ध्यान करना चाहिए.