84 किलो की तलवार लेकर चलते थे सम्राट पृथ्वीराज चौहान

वीर सम्राट पृथ्वीराज चौहान  का नाम हम सबने बचपन से सुना है, तो आइए जानते है.. सम्राट पृथ्वीराज चौहान से जुड़ा इतिहास एवं रोचक तथ्य, और उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं के बारे में

(1)   पृथ्वीराज चौहान का पूरा नाम यही था, पर उन्हें राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता था

(2)   उनकी माता का नाम कमलादेवी था, तथा पिता का नाम राजा सोमेश्वर चौहान था।

(3)   पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 ई. में हुआ था और राज्याभिषेक 1169 ई. में हुआ।

(4)   वह चौहान (राजपूत) वंश के राजा थे।

(5)   दिल्ली और अजमेर दोनों जगह उनकी राजधानी थी।

(6)    प्रथ्वीराज चौहान ने 12 वर्ष की उम्र मे बिना किसी हथियार के खूंखार जंगली शेर का जबड़ा चीर दिया था।

(7)    पृथ्वीराज चौहान ने 16 वर्ष की आयु में ही महाबली नाहरराय को युद्ध मे हराकर माड़वकर पर विजय प्राप्त की थी।

(8)   पृथ्वीराज चौहान ने तलवार के एक वार से जंगली हाथी का सिर धड़ से अलग कर दिया था।

(9)    महान सम्राट प्रथ्वीराज चौहान कि तलवार का वजन 84 किलो था, और उसे एक हाथ से चलाते थे, सुनने में अविश्वसनीय किंतु यह सत्य है। सम्राट पृथ्वीराज चौहान पशु-पक्षियों के साथ बाते करने की कला जानते थे।

(10)प्रथ्वीराज चौहान 1166 ई. में अजमेर की गद्दी पर बैठे और तीन वर्ष के बाद यानि 1169 में दिल्ली के सिहासन पर बैठकर पूरे हिन्दुस्तान पर राज किया।

(11) सम्राट पृथ्वीराज चौहान की पत्नी का नाम संयोगिता था।

(12) पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को 16 बार युद्ध में हराकर जीवन दान दिया था।

(13)गौरी ने 17 वी बार पृथ्वीराज चौहान को धोखे से बंदी बनाया और अपने देश ले जाकर उनकी दोनों आँखे फोड़ दी थीं। उसके बाद भी राजदरबार मे पृथ्वीराज चौहान ने अपना मस्तक नहीं झुकाया था।

(14) मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर अनेकों प्रकार की पीड़ा दी थी और कई महीनों तक भूखा रखा था। फिर भी अपनी जिजीविषा से सम्राट जीवित रहे थे।

(15)सम्राट पृथ्वीराज चौहान की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि जन्म से ही उन्हें शब्द भेदी बाण की कला ज्ञात थी। यह क्षमता अयोध्या नरेश राजा दशरथ के बाद केवल उन्हीं में थी।

(16)पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु दुश्मन के हाथों नहीं बल्कि अपने मित्र चन्द्रबरदाई के हाथों से हुई थी, यह उन दोनों का स्वाभिमान था कि दोनों ने एक दूसरे को कटार घोंप कर अपना बलिदान दिया, क्योंकि और कोई विकल्प नहीं था। इस तरह 1192 ई. में उनकी मृत्यु हुई थी।