आज 12 जनवरी है, भारत के एक ऐसे महापुरुष की पुण्यतिथि जिसने अपने अल्प जीवन काल में ही इतिहास का ऐसा अध्याय लिख दिया, जो, उन्हें अमर कर गया. जिसने कहा था, ‘संघर्ष जितना बड़ा होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी.’ इस महापुरुष का नाम है, स्वामी विवेकानन्द. सन 1893 में उन्होंने अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित हुए ‘विश्व धर्म सम्मलेन’ में जो भाषण दिया था, वो बेमिसाल था. अमेरिकन सोसाइटी में ‘बहनो और भाइयो’ के संबोधन से अपनी बात शुरू करने वाले स्वामी विवेकानन्द ने पूरी दुनियां का ध्यान अपनी और खींच लिया था, और उसके बाद सनातन धर्म पर दिए गए उनके लम्बे भाषण को लोग लगातार सुनते रहे. उन्होंने अपनी आध्यात्मिक सोच से पूरी दुनिया को सनातन धर्म, भारतीय संस्कृति, वेदों और शास्त्रों के ज्ञान से अवगत कराया. करोड़ों की भीड़ में यही थी उनकी पहचान, जो उन्हें सबसे अलग बनाती थी. उनके इसी भाषण के बाद दुनियां उनकी आध्यात्मिक सोच और दार्शनिक विचारों से काफी प्रभावित हो गई थी. कितना अद्भुत रहा होगा उनका व्यक्तिव कि अपनी छोटी सी जीवन यात्रा में ही वो पूरी दुनियां में एक महान हस्ती बन गए.
12 जनवरी 1863 को कलकत्ता हाईकोर्ट के एक वकील पिता विश्वनाथ दत्त के घर पैदा हुए स्वामी विवेकानन्द का असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था. उनकी माँ एक धार्मिक विचारों वाली महिला थीं. अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस का उनके जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव था, उनकी प्रेरणा से ही मात्र 25 साल की उम्र में उन्होंने पारिवारिक जीवन छोड़कर संन्यास ले लिया था. भारत की युवा पीढ़ी पर उनके विचारों का बहुत गहरा असर रहा है, या फिर ये भी कह सकते हैं, वह भारतीय युवा शक्ति को जानते थे, उनका यही मानना था कि देश के युवा ही देश का भविष्य होते हैं. युवा शक्ति को जागृत करने के लिए कही गईं उनकी बातें आज भी देश के युवाओं को उनके कर्तव्यों के प्रति सचेत करने का काम करती हैं. उनके द्वारा स्थापित किये गए रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन आज भी सम्पूर्ण भारत में ज्ञान का प्रचार प्रसार कर रहे हैं. 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 साल की उम्र में इस महापुरुष ने अपने प्राण त्याग दिए, लेकिन अपने महान विचारों से युगों युगों तक वो भारतीय जनमानस के ह्रदय में जीवित रहेंगे.