भारत के गौरवशाली किले:समुद्र के बीच में बने सिंधुदुर्ग से जुड़ा है शिवाजी महाराज का इतिहास

देश में मौजूद पुराने किलों से वहां के राजसी वैभव का पता चलता है और यह भी पता चलता है कि उस वक्त भी निर्माण और शिल्प कौशल में भारत किसी अन्य देश से पीछे नहीं था। ऐसा ही एक किला है महाराष्ट्र का सिंधु दुर्ग। यह किला मुंबई से 400 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र के बीच में बनाया गया था। किले का निर्माण छत्रपति शिवाजी महाराज ने सन् 1664 से 1667 के बीच किया था। सिंधु दुर्ग समुद्र के बीच एक टापू पर बना होने से काफी खूबसूरत है और इसी वजह से सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह मुंबई के दक्षिण में महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में स्थित है।

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इस किले के नाम से ही महाराष्ट्र के जिले का नाम सिंधुदुर्ग पड़ गया। जिले का मुख्यालय ओरोस है। यह जिला रत्नागिरि जिले से अलग करके बनाया गया था। महाराष्ट्र में यह सबसे कम जनसंख्या वाला जिला है। वास्तव में इसका नाम सिंधु यानि समुद्र और दुर्ग यानि किला से मिल कर बना है, इसका अर्थ समुद्र का किला है। सिंधुदुर्ग जिले के मालवन तालुका यानी तहसील में समुद्र तट से कुछ दूर अरब सागर में एक द्वीप पर बना यह किला नौसैनिक महत्व का है। यह मुंबई के दक्षिण में महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में स्थित है। भारत सरकार ने इस किले को 21 जून 2010 में राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया है।

छत्रपति शिवाजी महाराज के सैनिक दल में इस किले का बहुत महत्व था। किले का क्षेत्र कुरटे बंदरगाह पर 48 एकड़ में फैला हुआ है। तटबंदी की लंबाई करीब तीन किलोमीटर है। किले में बुर्जों की संख्या 52 हैं और इसमें 45 पथरीले जिने यानी सीढ़ियों वाले चढ़ाव हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज के पास 362 किले थे। इन सब किलों के पूर्व में विजापूर, दक्षिण में हुबली, पश्चिम में अरब समुद्र और उत्तर में खानदेश-वहाड तक इनका विस्तार है। ‘भुईकोट’ और पहाड़ी किले के पास सागरी मार्ग पर शत्रु पर चढ़ाई के लिए जलदुर्ग का निर्माण महत्वपूर्ण है। अच्छे, मजबूत और सुरक्षित स्थलों को खोज कर समुद्र किनारों का निरीक्षण किया। इसके बाद सन् 1664 में मालवण के पास कुरटे नाम की काली चट्टानवाली जगह पर किला बनाने के लिए चुनी गई। शिवाजी महाराज के हाथों ही किले की नींव डाली गई थी। आज ‘मोरयाचा दगड’ नाम से यह जगह प्रसिद्ध है। एक पत्थर पर गणेशमूर्ति, एक सूर्याकृति और दूसरी ओर चंद्राकार बनाकर महाराज ने पूजा की थी।

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इस किले पर शिवाजी महाराज के काल के मीठे पानी के तीन प्रमुख कुएं हैं। उनके नाम दूध कुआं, शक्कर कुआं और दही कुआं हैं। किले के बाहर खारा पानी और अंदर मीठा पानी होना प्रकृति का एक चमत्कार ही है। इस कारण किले में रहना सुलभ हुआ था। किले में एक शिव मंदिर भी स्थापित है, जिसे सन् 1695 में शिवाजी महाराज के पुत्र राजाराम महाराज ने बनाया था। इस प्रकार यह किला सैलानियों और खासतौर पर शिवाजी को पूजने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यह प्राकृतिक सौंदर्य, इतिहास और आस्था से जुड़ी बहुत महत्वपूर्ण जगह है। इसी कारण यहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं।