पवित्र नगर:मथुरा जिसका नाम लेने से ही मिल जाता है भगवान के नाम का पुण्य

यदि देश के प्रमुख तीर्थों की बात करें तो मथुरा का नाम सहज ही आ जाता है, क्योंकि यहां भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था। संभवत: यही कारण है कि इस तीर्थ नगरी को सात पवित्र पुरियों में शामिल किया गया है। मथुरा उत्तर प्रदेश राज्य का धार्मिक के साथ ही ऐतिहासिक नगर भी है। कभी यह शूरसेन देश की राजधानी थी। पुराने ग्रंथों में मथुरा को शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा जैसे नामों से भी पुकारा गया है।

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जाता है कि यदि कोई मथुरा का नाम ले लें तो उसे भगवान के नाम का उच्चारण करने का फल मिलता है। यदि वह मथुरा का नाम सुन लें तो भगवान श्रीकृष्ण की कथा सुनने का फल मिलता है। मथुरा का स्पर्श करने यानी वहां पहुंचने पर व्यक्ति को साधु- संतों के चरण स्पर्श का फल मिल जाता है। इस तरह मथुरा की महिमा निराली है। मथुरा में रहकर किसी भी गंध को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को भगवान के चरणों पर चढ़ी हुई तुलसी के पत्ते की सुगंध लेने का फल मिलता है। मथुरा का दर्शन करने वाला व्यक्ति श्रीहरि के दर्शन का फल पाता है। खुद किया हुआ आहार भी यहां भगवान लक्ष्मीपति के नैवेद्य- प्रसाद ग्रहण करने का फल देता है। दोनों हाथों से वहां कोई भी किया कार्य भगवान श्रीकृष्ण की सेवा करने के फल के बराबर माना जाता है। यहां घूमने- फिरने वाला व्यक्ति भी पग-पग पर तीर्थयात्रा का फल पा लेता है।

दर्शन के योग्य कई स्थान
श्रीकृष्ण जन्मभूमि होने से इसका पूरी दुनिया में महत्व है। पर्यटन के नजरिये से भी यह अहम है, क्योंकि विदेशों से भी लोग यहां भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए आते हैं। गोविंद देव मंदिर, रंगजी मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, बांकेबिहारी मंदिर और इस्कॉन मंदिर यहां के प्रमुख मंदिरों में से हैं। मथुरा भगवान श्रीकृष्ण का निवास स्थान होने से समूचे हिंदू समाज के लिए पूज्य है। यहां का इतिहास भी काफी पुराना है। यहां तक कि रामायण में भी मथुरा का उल्लेख है। यह भी प्रमाणित है कि सन 130 में कुषाण शासक कनिष्क की अनेक राजधानियों में मथुरा नगरी भी थी। वैसे शूरसेन देश की मुख्य नगरी मथुरा के विषय में आज तक कोई वैदिक संकेत नहीं मिल सका है, लेकिन ई.पू. पांचवीं शताब्दी से इसका अस्तित्व सिद्ध हो चुका है।

रामायण में भी मथुरा
वाल्मीकि रामायण में मथुरा को मधुपुर या मधुदानव का नगर कहा गया है। यहां लवणासुर की राजधानी बताई गई है। इस कथा के अनुसार इस नगरी को मधुदैत्य ने बसाई थी, जिसका पुत्र लवणासुर था। लवणासुर का अंत भगवान श्रीराम के छोटे भाई शत्रुघ्न ने किया था। इससे ऐसा लगता है कि मधुपुरी या मथुरा रामायण-काल में बसाई गई थी। रामायण में इस नगरी की समृद्धि की जानकारी दी गई है। इस नगरी को लवणासुर ने भी संवारा था। इस तरह प्राचीनकाल से अब तक इस नगर का अस्तित्व चला आ रहा है।

 

 

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मथुरा के आसपास कई वन- उपवन
वराह पुराण एवं नारदीय पुराण में मथुरा के आसपास 12 वनों का उल्लेख मिलता है- जैसे मधुवन, तालवन, कुमुदवन, काम्यवन, बहुलावन, भद्रवन, खदिरवन, महावन, लौहजंघवन, बिल्ववन, भांडीरवन एवं वृंदावन। इसके अलावा 24 उपवन भी थे, जिनका पुराणों में नहीं, बल्कि उनके बाद के ग्रंथों ने जिक्र मिलता है।

कुल मिलाकर मथुरा की महिमा अपार है। इस पवित्र धरती पर आते ही सारे पापों का नाश हो जाता है। व्यक्ति में भक्ति का भाव खुद ही प्रकट होने लगता है और वह नकारात्मक विचारों को छोड़ सकारात्मक विचारों के साथ जीवन को धन्य कर लेता है।