भगवान शिव और उनकी विभिन्न लीलाओं का वर्णन है लिंग पुराण में। इसमें ईशान कल्प में ब्रह्मा जी द्वारा कही गयी भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों की कथा है। पहले योग और फिर कल्प के संबंध में विस्तार से वर्णन मिलता है। लिंग के अर्थ को लेकर वर्तमान में बहुत बड़ी भ्रांति है जिसका उचित समाधान लिंग पुराण में मिलता है। वास्तव में लिंग का अर्थ होता है चिन्ह अथवा प्रतीक। भगवान शिव आदि पुरुष हैं, शिवलिंग भगवान् शिव की चिन्मय शक्ति का भौतिक स्वरूप है। शिव निराकार हैं और उनका साकार स्वरूप शिवलिंग है। लिंग पुराण शिव पुराण का पूरक ग्रंथ माना जाता है।ImageSource
लिंग पुराण में शिवजी की पूजा अर्चना आदि का विस्तार से वर्णन है। इसके अनुसार शिव ही आदि कारण हैं और ऊँकार हैं। शिव ही त्रिदेव के रूप में सारी सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करते हैं। शिव ही पांच महाभूतों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के आदि कारण हैं।
सबसे पहले शब्द उत्पन्न हुआ फिर शब्द से आकाश, आकाश से स्पर्श, स्पर्श से वायु, वायु से रूप, रूप से अग्नि, अग्नि से रस, रस से गंध, गंध से पृथ्वी उत्पन्न हुई। आकाश में एक गुण, वायु में दो गुण, अग्नि में तीन गुण, जल में चार गुण और पृथ्वी में पांच गुण मिलते हैं।
पृथ्वी से लेकर महत लोक तक के सभी तत्वों को मिलाकर एक अण्ड अथवा पिण्ड बना जिसे ब्रह्माण्ड कहते हैं और यह ब्रह्माण्ड अपने आकार से दस गुना अधिक जल से घिरा हुआ है, इसी क्रम में उस पिण्ड से दस गुना जल, जल से दस गुना वायु, वायु से दस गुना आकाश की स्थिति है। इस प्रकार करोड़ों ब्रह्माण्ड की रचना हुई और हर ब्रह्माण्ड में अलग-अलग त्रिदेव (ब्रह्मा विष्णु महेश) स्थापित हुए।
लिंग पुराण में ग्यारह हजार (11000) श्लोक, एक सौ तिरसठ (163) अध्याय हैं। यह पुराण दो भागों में विभक्त है- पूर्व भाग और उत्तर भाग।
पूर्व भाग लिंग पुराण के पूर्व भाग में योग आख्यान और कल्पाख्यन का वर्णन है साथ ही सृष्टि के निर्माण की कथा, शिवलिंग के प्रकट होने की कथा, शिवलिंग के पूजन का विधान, सनतकुमार और शैल का संवाद, त्रिपुर की कथा, भगवान शिव के व्रतों की कथा, काशी (वाराणसी) तथा श्रीशैल का वर्णन, अंधकासुर की कथा, वराह तथा नरसिंह अवतारों की कथा, जालंधर वध की कथा, शिव सहस्त्रनाम, दक्ष यज्ञ विध्वंस की कथा, कामदेव के दहन की कथा, शिव पार्वती के विवाह की कथा, विनायक गणेश की कथा, शिव तांडव प्रसंग, उपमन्यु की कथा आदि लिंग पुराण में विस्तार से वर्णित है साथ ही महर्षि दधीचि के त्याग की कथा, सूर्यवंश और चंद्रवंश का भी वर्णन है ।उत्तर भाग लिंग पुराण के उत्तर भाग में भगवान विष्णु की महिमा, अंबरीष की कथा, सनत कुमार और नंदीश्वर का संवाद, शिवजी की महिमा, सूर्य की महिमा और सूर्य पूजा की विधि, शिवजी की भुक्ति मुक्ति दायिनी पूजा का विधान और फल, विभिन्न प्रकार के दानों एवं व्रतों का परिचय और उनका फल, श्राद्ध प्रकरण, प्रतिष्ठातंत्र आदि का विस्तृत वर्णन है। अघोर विद्या, बृजेश्वरी महाविद्या, गायत्री महिमा, त्रयम्बक महात्यम और उप संहार में लिंग पुराण के पठन पाठन और श्रवण का फल बताया गया है।
ॐ तत्सत