महाभारत के काल में कौरवों की राजधानी रहा हस्तिनापुर जितना चर्चित रहा, बाद में उतना ही गुमनाम होता गया. भारत वर्ष के गौरवशाली इतिहास में राजा रजवाड़ों का दौर कई सदियों तक चलता रहा, बाद में मुगलों ने आकर इसे दूषित करने का प्रयत्न किया, लेकिन संस्कृति और विचारधाराएँ कभी नहीं बदलते, हस्तिनापुर की भी कुछ ऐसी ही कहानी है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सम्राट भरत के समय में पुरुवंशी राजा हस्ति ने हस्तिनापुर को अपनी राजधानी बनाया था, जो उनके ही नाम पर था. ये भी कहा जाता है कि, हस्तिनापुर से पहले उनके राज्य की राजधानी खांडवप्रस्थ हुआ करती थी. लेकिन एक बार अचानक आई जल प्रलय के कारण यह राजधानी उजाड़ हो गई, उसके बाद राजा हस्ति ने नई राजधानी बनाई, और उसका नाम रखा हस्तिनापुर.
राजा हस्ती के बाद राजा अजामीढ़, महाराज दक्ष, संवरण, और कुरु ने हस्तिनापुर में शासन किया. और कुरु वंश में आगे जाकर राजा शांतनु हुए, और शांतनु के पौत्र पांडु और धृतराष्ट्र हुए. उसके पश्चात उनके ही पुत्र कौरव और पांडव इस राज्य के बंटवारे के लिए महाभारत के मैदान में आमने सामने खड़े थे. उसके बाद वहां पांडवों का राज्य स्थापित हुआ. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक बार गंगा नदी में आई बाढ़ के कारण पांडवों की ये राजधानी डूब गई, और उसके बाद सभी पांडव यह स्थान छोड़कर कौशाम्बी चले गए.
वर्तमान समय में हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ से लगभग 37 किलोमीटर दूर स्थित है, और दिल्ली से इसकी दूरी 110 किलोमीटर है. हालांकि यहाँ केवल प्राचीन हस्तिनापुर के अवशेष ही देखने को मिलते हैं. यहाँ के भूभाग में पांडवों का एक विशाल किला भी दबा हुआ है, सही तरीके से देखभाल नहीं होने की वजह से वो भी धीरे धीरे पूरी तरह से खंडहर में परिवर्तित होने के कगार पर है.