महाभारत हम सबके जीवन का हिस्सा है. उसमें इतनी सीख है, जिसे मनुष्य अपनी जीवन शैली में शामिल कर ले तो बहुत सी समस्याओं का अंत हो जायेगा. महाभारत काल में ही भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था. और आज वही ज्ञान हम सब अपने जीवन में आत्म सात करते हैं. जिसने इसे समझ लिया वो पास हो जाते हैं, और जो जीवन की आपा धापी में उलझ गया वो उलझन में फंसा ही रह जाता है. पर महाभारत के कुछ ऐसे पात्र भी थे जिन्हने हम ज्यादा नहीं जानते, लेकिन उनकी बहुत अहमियत है.
स्वार्थ और महत्वाकांक्षाओं के आधार पर लड़े गए इस युद्ध में एक तरफ धर्म था और दूसरी तरफ लालच और अहंकार. एक तरफ नारायण थे तो दूसरी तरफ उनकी नारायणी सेना. लेकिन युद्ध तो होना ही था. क्योंकि उस समय के हिसाब से वो युद्ध धरती पर बहुत बड़ी सभ्यता का आगाज़ करने वाला था.
वैसे तो महाभारत का ये युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच था, पर जाने अनजाने में उनसे जितने भी लोग जुड़े हुए थे, वो सभी प्रभावित हुए. कौरवों की तरफ सब कुछ स्वार्थ की सिद्धि हेतु ही किया जाता था. जिनमें से एक बड़ा कार्य था 100 कौरवों की एकमात्र बहन दुशाला का विवाह. दुशाला को पांडवों ने अपनी बहन के रूप में माना था. दुशाला का विवाह बाद में दुर्योधन के मित्र जयद्रथ के साथ हुआ.
जयद्रथ बहुत बड़ा अधर्मी और दुराचारी था. और वो बहुत शक्तिशाली भी था. अगर देखा जाये तो अर्जुन के पुत्र और महान योद्धा अभिमन्यु का अंत भी उसी की वजह से हुआ था, क्योंकि जयद्रथ ने दुर्योधन के प्रति अपनी निष्ठा दिखाई, और चक्रव्यहू में फंसे अभिमन्यु तक पांडवों को पहुँचने ही नहीं दिया. एक दिन के लिए उसे इतनी शक्ति मिल गई थी, कि वो किसी को भी रोकने में सक्षम था. हालांकि बाद में युद्ध में अर्जुन के हाथों उसका अंत हुआ.
अपनी बहन का मान रखते हुए पांडवों ने जयद्रथ को एक बार पहले भी उसके घृणित अपराध के लिए जीवनदान दिया था. लेकिन अंत में उसका अंजाम बहुत बुरा हुआ.
वैसे देखा जाए तो इन सबके बीच सबसे ज्यादा मुश्किल दुशाला को ही हुई. वैसे भी जयद्रथ ज्यादा समय तक कौरवों के साथ ही रहा. और दुशाला को पति के साथ रहने का सुख कभी मिल ही नहीं सका. और जब युद्ध में उसका अंत हो गया, तो फिर दुशाला को उम्र भर बहुत दुखद जीवन ही जीना पड़ा.