महाभारत के युद्ध के बारे में सब जानते हैं. इतिहास में ये एक ऐसा संग्राम था जिसमें उस समय धरती के सभी वीर योद्धाओं ने भाग लिया. लड़ाई धर्म और अधर्म की थी. लेकिन धर्म की स्थापना के लिए उसके बाद भी बहुत संघर्ष करना पड़ा. क्योंकि जहाँ पांडव धर्म के साथ थे, तो कौरव अधर्म के साथ. पर विवशता में कुछ बड़े योद्धाओं को भी अन्याय के साथ खड़ा होना पड़ा. जिनका सामना करना पांडवों के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी. यहाँ बात उस योद्धा की है, जिसने सबको महाबली बनाया, पर आखिर उसे इतना पराक्रमी किसने बनाया? गुरु द्रोण ही वो योद्धा थे, जिन्होंने अपनी विद्या से अर्जुन को धरती पर सबसे बड़ा धनुर्धर बनाया, पांडवों और कौरवों को अस्त्र शस्त्रों कि शिक्षा दी, अपने पुत्र अश्वत्थामा को वीर बनाया, और वो स्वयं इतने सक्षम थे कि, उन्हें कोई भी पराजित नहीं कर सकता था.
भीष्म पितामह के बाद कौरवों की तरफ से सेनापति बने थे, और उनके बाद गुरु द्रोण कौरवों के सेनापति बने, और युद्धभूमि में उनके चलाये हुए अस्त्रों से हाहाकार मच गया था. पर गुरु द्रोण को इतना शक्तिशाली किसने बनाया था. दरअसल गुरु द्रोण के पास बहुत बड़ी संख्या में दिव्यास्त्र थे, जिनका सामना करने की क्षमता किसी में नहीं थी. किन्तु ये दिव्यास्त्र उनके पास भी तो कहीं से आये होंगे. तो इसके पीछे भी एक कहानी है.
कहते हैं, एक बार भगवान परशुराम, जिन्हें शिव का अवतार भी माना जाता था, वो अपना सब कुछ ब्राह्मणों को दान में दे रहे थे. गुरु द्रोण को भी देवताओं के गुरु बृहस्पति का अंशावतार कहा जाता था, और वो महर्षि भारद्वाज के पुत्र थे, जब उन्होंने महर्षि परशुराम को अपना परिचय दिया तो, महर्षि परशुराम बहुत प्रसन्न हुए. उसके बाद गुरु द्रोण ने, उनसे सभी दिव्यास्त्र मांग लिए. महर्षि परशुराम को भी यही लगा कि, ये दिव्यास्त्र सही हाथों को सौंप रहा हूँ, तो उन्होंने ना सिर्फ उन्हें अपने समस्त दिव्यास्त्र दे दिए, साथ ही उन्हें प्रयोग करने की विधि भी सिखा दी. जिसके कारण गुरु द्रोण परम शक्तिशाली बन गए, और उनसे युद्ध में नहीं जीता जा सकता था. पांडवों की योजना के अनुसार रणभूमि में अश्वत्थामा की मृत्यु के झूठ को सत्य मानकर गुरु द्रोण ने अपने अस्त्र शस्त्र नीचे रख दिए, और तभी महाराज द्रुपद के पुत्र ध्रष्ट्धुम्न ने, अपने पिता की मौत का प्रतिशोध लेते हुए गुरु द्रोण का वध कर दिया. और एक महान योद्धा का दुखदायी अंत हो गया.