महानता यूँ ही नहीं मिलती, कमाई जाती है. हर इंसान अपने नसीब के साथ इस धरती पर आता है. लेकिन इस नसीब का विस्तार जन्म के बाद इंसान के कर्मों द्वारा खुद तैयार किया जाता है. जो महान कार्य करते हैं, वो सदैव हमारे बीच रहते हैं, और सदियों तक याद किये जाते हैं. अभी हाल ही में हमारे देश के प्रसिद्द उधोगपति रतन टाटा के बारे में एक खबर तेज़ी से चर्चित हुई है. दरअसल उन्होंने 2 साल से बीमार अपने एक पूर्व कर्मचारी से मिलने के लिए मुंबई से पुणे के बीच का सफर तय किया, और उनके साथ वहां जाकर समय बिताया.
रतन टाटा जी के इस कार्य से सोसाइटी वाले भी बहुत आश्चर्यचकित हो गए. सोसायटी में रहने वाली अंजलि पर्डिकर के अनुसार रतन टाटा देखने में इतने सहज थे कि उन्हें देखकर बिल्कुल भी नहीं लगा कि वह इतने बड़े उद्योगपति हैं. उनमें जरा भी घमंड नहीं था. सोसायटी में दो की गाड़ियां दाखिल हुईं. उनमें से एक गाड़ी से वह नीचे उतरे और सीधे लिफ्ट में घुस गए. उन्हें देखकर लगा कि वह रतन टाटा हैं. बाद में जब अंजलि ने कर्मचारियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि हां वह रतन टाटा ही हैं.
सोसायटी के अध्यक्ष अभिजीत माकाशीर ने कहा कि टाटा का उनकी सोसायटी में आना हमेशा याद रहेगा. जब रतन टाटा लौट रहे थे तो अभिजीत माकाशीर और उनकी बेटी आदिश्री ने उनके साथ पार्किंग में बातचीत की. उन्होंने बताया, ‘टाटा की अचानक यात्रा ने हमें ऐसा महसूस कराया कि हम ईश्वर से मिल रहे हैं. उन्होंने बिना किसी संकोच के हमारे साथ बातचीत की. कुछ ही मिनटों की बातचीत में, रतन टाटा ने कहा कि हम अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें, इससे कभी भी विचलित न हों.’
गौरतलब है कि, रतन टाटा ने टाटा उद्योग को आसमान की ऊँचाइयों तक पहुँचाया, उनके अपने कर्मचारियों के साथ बहुत अच्छे और मधुर सम्बन्ध रहे. वो अपनी साधारण जीवन शैली के लिए जाने जाते हैं.