ये हैं विवाह के सात फेरों के सातों वचन

सनातन धर्म इतना महान है कि, उसके हर रीति रिवाज़ और परंपरा में जीवन के ऐसे सूत्र हैं, जो इंसान को उसके दायित्वों का निर्वाह करना सिखाते हैं. वैदिक संस्कृति के अनुसार एक मनुष्य के जीवन के सोलह संस्कार होते हैं. जिनका बहुत महत्व है. और उन्हीं सोलह संस्कारों में से एक हैं, विवाह संस्कार. ‘वि’ और ‘वाह’ इस दोनों को मिलाकर जो शाब्दिक अर्थ बनता है, उसके अनुसार, अपने उत्तरदायित्व और जिम्मेदारियों को सम्पूर्ण रूप से निभाना. और इसकी शुरुआत विवाह के समय जो वचन दिए जाते हैं, उनसे होती है. और ये सातों वचन पुरुष द्वारा स्त्री को दिए जाते हैं. जो इस प्रकार हैं.

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कन्या वर से पहला वचन मांगती है कि, यदि आप कभी तीर्थयात्रा पर जाएँ, तो मुझे भी अपने साथ लेकर जाना. और यदि आप कोई भी यज्ञ, हवन या धार्मिक अनुष्ठान करें तो आज की तरह मुझे अपने (वाम भाग) बाएं तरफ बिठाएं. यदि आप इसे स्वीकार करते हैं, तो मैं आपके वामांग में (शरीर के बाएं भाग में) आना स्वीकार करती हूँ.

कन्या, वर से दूसरा वचन मांगती है कि, जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा परिवार की मर्यादा के अनुसार धार्मिक अनुष्ठान करते हुए ईश्वर के भक्त बने रहें. यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ.

तीसरे वचन में कन्या वर से कहती है कि, आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा भरण पोषण (पालन) करते रहेंगे. यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ.

विवाह के चौथे वचन में कन्या, वर से मांगती है कि, अब आप विवाह बंधन में बँधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपका ही होगा. यदि आप इस कर्तव्य को पूरी तरह निभाने का संकल्प लेते हैं, तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ.

कन्या अपने पांचवे वचन में वर से कहती है कि, घर के समस्त मांगलिक कार्यों, विवाह, आदि, और लेन – देन या अन्य किसी भी कार्य में खर्च करते समय यदि आप मेरी भी राय लेने का संकल्प करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ.

 

कन्या अपने छटवें वचन में कहती है कि, यदि मैं कभी अपनी सहेलियों या अन्य महिलाओं के साथ बैठी रहूँ तो आप उनके सामने किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे. और आप जुआ या अन्य किसी भी प्रकार की बुराइयों से स्वयं को दूर रखने का वचन देंगे, तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ.

और अपने अंतिम यानि सातवें वचन में कन्या वर से कहती है कि, आप पराई स्त्रियों को मां के समान समझेंगें और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी और को भागीदार नहीं बनायेंगे. अगर आप ये संकल्प लेते हैं, तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ.