संस्कृति और संस्कारों को मानने वाले हमारे भारत देश में पुराने समय में कभी प्रकृति का दुरुपयोग नहीं किया गया, बल्कि पेड़-पौधे, नदी, पर्वत सहित इसके अटूट हिस्सों को पूजनीय माना है। इसी के चलते भगवान श्रीकृष्ण ने गाय को गोमाता बनाया, वहीं गोवर्धन पर्वत को पूज्य बनाकर उसे देवता का रूप दे दिया। ऐसे ही पूजनीय पहाड़ों में से एक है देवी को समर्पित गुजरात की एक छोटी- सी पहाड़ी, जिसे गब्बर पर्वत के रूप में जाना जाता है। गब्बर पर्वत गुजरात में बनासकांठा जिला स्थित एक छोटा- सा पहाड़ी टीला है, लेकिन इसका धार्मिक महत्व बहुत है। हां, यह भी जान लीजिए कि इस पहाड़ी का नाम गब्बर जरूर है लेकिन इसका फिल्म शोले से कोई संबंध नहीं है।
गब्बर पर्वत प्रसिद्ध तीर्थ अम्बाजी से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर गुजरात एवं राजस्थान की सीमा पर मौजूद है। यहीं से अरासुर पर्वत पर अरावली पर्वत से दक्षिण- पश्चिम दिशा में पवित्र वैदिक नदी सरस्वती का उद्गम भी होता है। सभी जानते हैं कि सरस्वती नदी का कई पुराने ग्रंथों में पवित्र नदियों के रूप में उल्लेख है और यह सात पवित्र नदियों में भी शामिल है। शास्त्रों में यह भी लिखा है कि पवित्र नदियों में यह एकमात्र है जिसका प्रवाह धरती के अंदर है, जबकि बाकी नदियां पृथ्वी के ऊपर बहती हैं।
जहां तक अम्बाजी की बात है यह मंदिर प्राचीन पौराणिक 51 शक्तिपीठों में से एक गिना जाता है। पुराणों के अनुसार दक्ष यज्ञ विध्वंस के बाद गुस्से में तांडव करते भगवान शिवजी के कंधे से देवी सती के शव का हृदय भाग यहां पर गिरा था। इसकी जानकारी तंत्र चूड़ामणि में भी मिलती है। मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी पर 999 सीढ़िय़ां बनी हुई हैं। पहाड़ी के ऊपर से सूर्यास्त देखने का अनुभव भी बेहतरीन होता है। इस स्थल की सागर सतह से ऊंचाई 480 मीटर यानि 1600 फीट है एवं इस पहाड़ी का क्षेत्रफल 8.33 किलोमीटर (5 वर्ग मील) है।
मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर गब्बर पहाड़ी है। इस पहाड़ी पर भी देवी मां का प्राचीन मंदिर मौजूद है। यहां एक पत्थर पर मां के चरण चिह्न बने हैं। इन पद चिह्नों के साथ-साथ मां के रथचिह्न भी मौजूद हैं। अम्बाजी के दर्शन के बाद श्रद्धालु गब्बर पहाड़ी पर जरूर जाते हैं। हर साल भाद्रपदी पूर्णिमा के मौके पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं। भाद्रपदी पूर्णिमा को इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु गब्बर पर्वत माला पर भी जाते हैं। यह स्थान धार्मिक महत्व का होने के साथ ही पर्यटन के लिहाज से भी बहुत अहम है। प्रत्येक माह पूर्णिमा और अष्टमी तिथि पर यहां देवी मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
गब्बर पर्वत पर अन्य दर्शनीय स्थानों में सनसेट पॉइंट, गुफाएं, माताजी के झूले एवं रज्जुमार्ग (रस्सी से बना पुल) काफी मशहूर हैं। खोजों से पता चला है कि अम्बाजी के मंदिर का निर्माण वल्लभी शासक, सूर्यवंश सम्राट अरुण सेन ने चौथी शताब्दी में करवाया था। अम्बाजी का यह बेहद प्राचीन मंदिर है और मां अम्बा-भवानी की शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर के प्रति भक्तों में अपार श्रद्धा है। इस मंदिर के गर्भगृह में मां की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है, बल्कि यहां मां का एक श्रीयंत्र स्थापित है। मां अम्बे यहां इसी श्रीयंत्र के रूप में साक्षात विराजित हैं। शक्ति के उपासकों के लिए यह मंदिर बहुत महत्व रखता है।
अम्बाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार हुआ था। वहीं भगवान श्रीराम भी शक्ति की उपासना के लिए यहां आ चुके हैं। इस तरह अम्बाजी और गब्बर पहाड़ी का एक दूसरे से गहरा संबंध है और संभवत: इन दोनों को मिलाकर ही इस तीर्थ के दर्शन पूर्ण होते हैं।