भगवान श्री राम का सम्पूर्ण जीवन मानवजाति के लिए समर्पित था। उनके आदर्शों और जीवन चरित्र से हमें जो सीख मिलती है, उसे समझकर मनुष्य का जीवन धन्य हो जाता है। रामायण से हमें वचन का महत्व, बाप-बेटे के मार्मिक संबंध, भाइयों के प्रेम, पति-पत्नी के कर्तव्य जाति-पाति और राज्य धर्म से ऊपर मित्रता के बारे में जानने को मौका मिलता है। रामायण के किष्किंधा कांड में भगवान श्री राम और सुग्रीव की मित्रता के बारे में बताया गया है। जब सुग्रीव में भगवान राम के समक्ष अपनी व्यथा बताई तो भगवान राम ने सुग्रीव को उनके दुःख निवारण का वचन दिया। इसके बाद भगवान राम ने सुग्रीव के भाई बाली का अन्त करके सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाया। इसके बाद सुग्रीव ने भी मित्रता निभाते हुए भगवान श्री राम के लिए वानर सेना को गठित किया। हालांकि बहुत लोगों के मन में प्रश्न आता है कि बलशाली बाली के बजाय श्रीराम ने कमजोर और प्रताड़ित सुग्रीव का हाथ क्यों थामा?
दरअसल सुग्रीव से मित्रता करने के लिए सबसे पहले भगवान श्रीराम को कबंध नाम के राक्षस ने कहा था। इस अजीबोगरीब राक्षस का सिर, धड़, मुख, कोई भी अंग सही स्थान पर नहीं था। इस राक्षस का मुख पेट के स्थान पर और दिमाग और एक आँख सीने पर थे। कबंध रक्षक असल में पिछले जन्म में ऋषि पुत्र था लेकिन एक ऋषि के श्राप के कारण वह अजीबोगरीब राक्षस बन गया था। जब भगवान श्री राम ने कबंध राक्षस को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। अपनी मुक्ति से प्रसन्न होकर कबंध राक्षस ने श्रीराम से वहां आने का कारण पूछा। जब भगवान राम ने कबंध राक्षस को बताया कि वह अपनी पत्नी को रावण की कैद से छुड़ाने के लिए जा रहे हैं। तब कबंध राक्षस ने भगवान राम को बताया कि सुग्रीव ही वह शख़्स है जो उन्हें सीताजी तक पहुंचने में मदद कर सकता है। आपको सुग्रीव की मदद लेनी चाहिए।
कबंध राक्षस ने भगवान श्री राम से कहा कि इस लोक में छह युक्तियां हैं, जिससे राजा सब कुछ प्राप्त कर सकता है- संधि, विग्रह, यान, आसन, द्विवेदी भाव और समाशय। जो मनुष्य बुरी स्थिति से ग्रस्त होता है, वह किसी दूसरे बुरी स्थिति से घिरा मनुष्य ही सेवा या सहायता प्राप्त करता है। यही नीति है। भगवान आप भी मुसीबत में हैं, इसलिए हे रघुनंदन आप अवश्य ही उस पुरुष को अपना मित्र बनाइये जो आपकी भांति ही मुसीबत का शिकार है। इस प्रकार आप समाशय नीति को अपनाएं। क्योंकि बहुत सोचने पर भी ऐसा किए बिना आपकी सफलता नहीं देखता हूँ। इसके बाद कबंध राक्षस ने भगवान श्री राम को सुग्रीव के साथ हुए अन्याय से अवगत कराया।