भारत भूमि वीरता के किस्सों से भरी हुई है. सदियों से और युगों से इस धरती पर बड़े बड़े योद्धाओं और वीरों ने जन्म लिया, और अपना जीवन मातृभूमि की सेवा में न्योछावर कर दिया. भारत के हर प्रान्त में वीरों की महान गाथाएँ हैं. राजस्थान का इतिहास यहां के वीरों के हजारों वीरता की सच्ची कहानियों के लिए भी जाना जाता है. यहाँ की धरती के कण कण में शौर्य की हवा बिखरी हुई है. जिनमें से कुछ के नाम तो सदैव के लिए अमर हो गए, और कुछ राजा ऐसे भी हैं, जो इतिहास के भंवर में कहीं खो गए.
ऐसे ही महान और वीर योद्धा थे शक्तावत और चुण्डावत. मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह की सेना की दो राजपूत रेजिमेंट थी. जिनके दो सेना प्रमुख थे. उनमें से एक रेजिमेंट के प्रमुख थे जीत सिंह चुण्डावत और एक थे शक्तावत. ये दोनों ही महान योद्धा थे, और इनकी वीरता के कई किस्से थे. पर दोनों में ही हमेशा अपनी श्रेष्ठता साबित करने की जिद होती थी. और इसके लिए दोनों ही कोई कसर नहीं छोड़ते थे. असल में चुण्डावत सेना के हरावल में युद्ध लड़ते थे, और शक्तावत सेना के पीछे के भाग में रहते थे. हरावल सेना का वो भाग होता है, जो युद्ध में सबसे आगे रहता है.एक दिन शक्तावत ने कहा कि, वो भी किसी से कम नहीं है, और उन्हें भी सेना के हरावल में युद्ध लड़ने का मौका दिया जाए. इसी बात को लेकर दोनों राजपूत रेजिमेंट में बहस होने लगी, और महाराणा अमर सिंह भी सोच भी में पड़ गए कि, किसे हरावल में लड़ने का मौका दिया जाए. इसी के चलते उन्होंने दोनों के सामने शर्त रखी कि, जो भी सबसे पहले उन्डाला के दुर्ग में प्रवेश करेगा, वही हरावल में युद्ध लडेगा.
उसके बाद दोनों सेनाओं ने दुर्ग को घेर लिया. दुर्ग के दोनों द्वार बंद थे. आगे के द्वार पर शक्तावत थे तो पीछे के द्वार पे चुण्डावत. शक्तावत ने देखा कि, आगे के द्वार पर दरवाजे में बड़ी बड़ी कीलें लगीं हुई हैं, जिसे देखकर हाथी डर गए और पीछे हट गए. उसके बाद शक्तावत के सेना प्रमुख बल्लू सिंह शक्तावत स्वयं द्वार के मुख्य दरवाजे पर खड़े हो गए, औए महावत से कहा अब हाथियों से प्रहार करवाओ, महावत ने पहले तो इंकार किया, लेकिन जब उन्होंने सख्ती से आदेश दिया तो महावत तैयार हो गए. हाथियों ने उनपर हमला किया. कीलें सेना प्रमुख की छाती में घुस गई, और वो वीरगति को प्राप्त हो गए. और लगातार प्रहार से द्वार भी कमजोर पड़कर खुल गया. और शक्तावत कि सेना अन्दर चली गई.
उसके बाद जब चुण्डावत को ये पता चला कि, पहले से ही वहां शक्तावत सेना पहुँच गई है, तो उनके सेना प्रमुख जीत सिंह चुण्डावत ने अपने सैनिक से कहा कि, उनका सर काटकर दुर्ग की दीवार से अन्दर फ़ेंक दे. सैनिक डर गया और इंकार कर दिया. तो चुण्डावत ने स्वयं अपने हाथ से अपना सर काटकर दुर्ग की दीवार से अन्दर फ़ेंक दिया. जब शक्तावत सेना को ये पता चला, तो वो भी चुण्डावत की वीरता के आगे नतमस्तक हो गए. आज भी ये वीर गाथा राजस्थान की हवाओं में अमर है.