वैसे तो भारतवर्ष की धरती पर एक से बढ़कर एक महान और वीर योद्धाओं का जन्म हुआ, और उन्होंने इस देश की मिट्टी को हमेशा गौरवान्वित किया. लेकिन कुछ ऐसे योद्धा भी हैं, जो अपने जीवन काल में कभी कोई युद्ध नहीं हारे, बल्कि जो उनके सामने आया उन्हें मुँह की खानी पड़ी.
इस महान धरती के ऐसे ही एक योद्धा का नाम है पजवन देवजी कक्षावा. आमेर के राजा के रूप में उन्होंने कई साल तक शासन किया, और हर युद्ध में दुश्मन को धूल चटा दी.
सन 1168 में आमेर के राजा के तौर पर इनका राज्याभिषेक हुआ और इनका विवाह भी वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान के परिवार में हुआ. चूंकि पजवन देवजी, महाराज पृथ्वीराज चौहान के रिश्तेदार थे, इसलिए उनकी तरफ से ही इन्होने ज़्यादातर युद्ध लड़े. कहते हैं, इन्होने अपने जीवन काल में 64 युद्ध लड़े थे, जिनमें से कभी कोई युद्ध नहीं हारे, हर बार विजय का ध्वज लहराते हुए ही रणभूमि से वापस लौटे.
मोहम्मद गोरी और महाराज पृथ्वी राज चौहान के बीच जो 17 युध्द हुए, कहते हैं, उनमें से केवल 2 या 3 युद्ध ही महाराज पृथ्वीराज जी ने स्वयं लड़े थे, और बाकी के युद्ध उनकी तरफ से पजवन देवजी ने ही लड़े. महाराज पृथ्वीराज जी, पजवन देवजी की वीरता पर इतना भरोसा करते थे कि, उन्हें यकीन था, जिस युद्ध में पजवन देवजी स्वयं मोर्चा सम्हालेंगे, उसे वो जीतकर ही आयेंगे.
मोहम्मद गोरी भी ये समझ गया था कि, जब तक पजवन देवजी, महाराज पृथ्वीराज चौहान के साथ हैं, तब तक उनको पराजित करना नामुमकिन है. इसलिए वो उस मौके की तलाश करने लगा था जिसमें वो, पजवन देवजी का अंत कर सके. और इसके लिए उसने एक योजना बनाई.
एक बार पजवन देवजी अपने कुछ सैनिकों के साथ नागौर पधारे, और मोहम्मद गोरी को इस बात का पता चल गया और उसने धोखे से अपनी विशाल सेना के साथ पजवन देवजी की सेना पर आक्रमण कर दिया। इतनी बड़ी संख्या में सेना को देखकर पजवन देवजी के सैनिकों का हौसला पस्त हो गया. और जब पजवन देवजी को इस बात का पता लगा, तो उन्होंने अपनी बहुत कम सेना होने के बाद भी मोहम्मद गोरी के साथ युद्ध करने का निर्णय लिया, और अपनी बातों से सेना में जोश का संचार कर दिया. जिसके परिणाम स्वरुप पजवन देवजी की सेना ने मोहम्मद गोरी की सेना को परास्त कर दिया. और पजवन देवजी ने मोहम्मद गोरी को बंदी बना लिया.