धर्म की स्थापना के लिए महाभारत से बड़ा संग्राम कभी नहीं हुआ इतिहास में

भगवान श्रीकृष्ण इस धरती पर मानव अवतार में धर्म की स्थापना के लिए आये थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन राज पाट, सुख वैभव, सर्वस्व धर्म की स्थापना के लिए न्योछावर कर दिया. उनकी बराबरी तो दूर ऐसा कोई योद्धा समकक्ष भी नहीं था जो उनके सामने क्षण भर भी ठहर पाता, क्योंकि वो तो स्वयं नारायण का अवतार थे.ImageSource

गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन को विश्व का सबसे बड़ा धनुर्धर बना दिया था, हालांकि उनके जैसे और भी योद्धा थे, लेकिन फिर भी अर्जुन को पराजित करना किसी के वश की बात नहीं थी. फिर भी भीष्म पितामह, कर्ण, और स्वयं गुरु द्रोण जैसे कुछ ऐसे परम शक्तिशाली योद्धा योद्धा थे, जिन्हें अर्जुन पराजित नहीं कर सकते थे, पर अर्जुन को भी ये योद्धा नहीं हरा सकते थे. पर बराबरी के मुकाबले में युद्ध किसी निर्णय तक नहीं पहुँच पाता, लेकिन कहीं न कहीं किसी न किसी को पराजित भी होना था, और किसी को विजेता बनना था, इसीलिए भगवान कृष्ण ने महाभारत के लिए युद्ध नीति अपने हिसाब से ही तैयार की थी. जिसकी बदौलत आखिरकार धर्म की जीत हुई.

कहते हैं, संसार में धर्म की स्थापना के लिए महाभारत से बड़ा युद्ध इतिहास में फिर दोबारा कभी नहीं हुआ. वो युद्ध जिसमें, सभी योद्धाओं को अपनों से ही लड़ना था, वो युद्ध जो अधर्म के नाश के लिए अनिवार्य था, जिस युद्ध में अर्जुन जैसे महा योद्धा ने लड़ने से इनकार कर दिया था, तब युद्ध के मैदान में ही भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया, और लड़ने के लिए तैयार किया था. लेकिन इसी युद्ध की कुछ ऐसी भी बातें हैं, जो समय और काल ने पहले ही निर्धारित कर रखी थी. कौरवों की तरफ से भी कुछ ऐसे योद्धा थे जो इस युद्ध का रुख बदल सकते थे. ImageSource

परन्तु श्रीकृष्ण ने उन्हें इस बात का भान कराया कि, योद्धा का जीवन धर्म की स्थापना के लिए होना चाहिए. और उन्होंने उसका पूरा पालन किया.