एक अद्भुत सूर्य मंदिर, भगवान श्रीराम ने भी की थी‌ यहां पूजा

गुजरात के मोढेरा में एक अद्भुत सूर्य मंदिर है। यह मंदिर अहमदाबाद से लगभग 300 किलोमीटर दूर पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर प्राचीन भारत की स्थापत्य कला का जीता-जागता उदाहरण है। इस मंदिर की खासियत यह है कि इसकी जुड़ाई के लिए कहीं भी चूने का उपयोग नहीं किया गया है। बड़ी-संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक यहां मंदिर और इसके आसपास की खूबसूरती का आनंद के लिए आते हैं। पर्यटक मंदिर के वास्तुशिल्प की बारीकियों को देखकर हैरान रह जाते हैं।

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मोढेरा के सूर्य मंदिर का इतिहास करीब 1000 साल पुराना है। मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में सम्राट भीमदेव सोलंकी प्रथम ने करवाया था। वह भगवान सूर्य की कुल देवता के रूप में पूजा करते थे। मंदिर को दो हिस्सों में बनाया गया है। पहला हिस्सा गर्भगृह का है जबकि दूसरा हिस्सा सभामंडप का है। मंदिर के सभामंडप में 52 स्तंभ हैं, जिन पर खूबसूरत तरीके से देवी-देवताओं के चित्र और रामायण व महाभारत के प्रसंगों को को उकेरा गया है। मंदिर को इस तरह से बनाया गया है कि सूर्य की किरणें सबसे पहले मंदिर के गर्भगृह को रोशन करती है। मंदिर का निर्माण कुछ ऐसी पद्धति से किया गया है कि भूकंप आने पर भी मंदिर को कुछ नहीं होगा।

ख़ास बात यह है कि इतना ऐतिहासिक और भव्य मंदिर होने के बावजूद यहां किसी भी देवी अथवा देवता की प्रतिमा स्थापित नहीं है। यह जागृत मंदिर नहीं है, क्योंकि विदेशी आक्रांताओं ने इस मंदिर पर हमला करके इसे नुकसान पहुंचाया है। इसलिए मंदिर को खंडित मानकर यहां पूजा नहीं की जाती है। यह मंदिर फ़िलहाल भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं।

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वहीं इस जगह का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। मान्यता है कि रावण का अंत करने के कारण भगवान श्रीराम पर ब्रह्म हत्या का पाप चढ़ गया था। तब भगवान श्रीराम, गुरु वशिष्ठ की सलाह पर धर्मरन्य आए थे और उन्होंने यहां व्रत, हवन और पूजा-पाठ की थी। इसके बाद उन्होंने यहां एक नगर बसाया था, जिसे मोढेरा के नाम से जानते हैं।