दुनिया की कोई भाषा नहीं है, संस्कृत से ज्यादा वैज्ञानिक भाषा

देववाणी संस्कृत को सबसे वैज्ञानिक भाषा भी माना जाता है। एक रिपोर्ट में भी सामने आया था कि बोलने वाले कंप्यूटर की दृष्टि से भी संस्कृत भाषा दुनिया की सबसे उपयुक्त भाषा है। संस्कृत के विद्वानों ने समय-समय पर संस्कृत के महत्व और इसकी वैज्ञानिकता को समझाया है। ऐसा एक प्रसंग है साल 2012 का, जब देश की पूर्व विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराजी ने अपने संस्कृत ज्ञान से विद्वानों को भी हैरान कर दिया था।

दरअसल साल 2012 में साउथ इंडिया एजुकेशन सोसाइटी की तरफ से उन्हें एक आवर्ड दिया गया था। इस कार्यक्रम में अभिनेता अमिताभ बच्च्चन सहित देश-विदेश के कई संस्कृत के विद्वान मौजूद थे। अवार्ड लेने के बाद सुषमा स्वराज जी ने अपने भाषण में कहा कि, संस्कृत विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा है। जब दुनिया में बोलने वाले कंप्यूटर बनाने की बात चली तो सवाल उठा कि कौन सी भाषा उसके लिए चुनी जाए, क्यों कि कंप्यूटर का अपना कोई विवेक नहीं होता है।

जो आप बोलते है वही कंप्यूटर लिखता है और जो आपने लिखा है वही कंप्यूटर पढ़ता है। इसलिए भाषा व्याकरण और ध्वनि की दृष्टि से वैज्ञानिक होनी चाहिए। यानी जो बोला जाए, वही कंप्यूटर पढ़े। आज मैं गर्व से कह सकती हूँ कि विश्व की तमाम भाषाओँ का अध्ययन करने के बाद जिस भाषा को कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त पाया गया वह संस्कृत है। जैसे अंग्रेजी में No और Know दोनों को ‘नो‘ पढ़ा जाता है, लेकिन संस्कृत में जो बोला जाता है वही लिखा जाता है। यहां तक की ‘इ’ और ‘ई’ की ध्वनी भी अलग-अलग होती है।

केवल ध्वनि की बात नहीं है। संस्कृत में शब्दों का इतना भंडार है कि रचनाकार अपनी इच्छा के अनुसार शब्दों का चयन कर सकता है। रामायण का एक प्रसंग है कि जिस समय भगवान राम लंका पर विजय पाने के लिए जाते हैं तो वह भगवान शिव की आराधना करते हैं। उस समय भगवान राम ने जो स्तुति की थी उसे राम चरित मानस में रुद्राष्टकम के नाम से समाविष्ट किया गया है। रुद्राष्टकम के शब्द है कि:-

लेकिन उसी समय श्रीराम पर विजय प्राप्त करने के लिए रावण ने भी आराधना की थी। उसने अपना सूत्र स्वयं रचा था जो शिव तांडव सूत्र के नाम से प्रसिद्ध है। शिव तांडव सूत्र के शब्द है कि:-

 

यहां मौजूद किसी 5 साल बच्चे को भी यह दो श्लोक सुना दिए जाए और उससे पूछा जाए कि कौन सा रावण ने रचा होगा और कौन सा भगवान श्रीराम ने पढ़ा होगा तो बच्चा बिना ज्ञान के भी बता देगा कि कौन सा श्लोक किसने कहा होगा। क्योंकि दोनों के श्लोक उनके व्यक्तित्व से मेल खाते है। यह संस्कृत की वैज्ञानिकता है।

जो लोग कहते हैं कि संस्कृत बोलचाल की भाषा नहीं बन सकती। संस्कृत कभी जन भाषा नहीं रही। शायद इससे बड़ी अज्ञानता की बात दूसरी नहीं हो सकती। प्राचीन समय में संस्कृत जन भाषा रही है। उस समय बिना विद्यालय गए भी लोग संस्कृत बोलते थे।