गढ़खंखाई माता मंदिर: माता की खंखार में इतना वेग था कि ढह गया था किला

हमारे देश का आधार धर्म और संस्कृति है। यहां जितने भी धर्म स्थल हैं, वे सभी आस्था और विश्वास पर टिके हुए हैं। हर धार्मिक स्थान को लेकर कोई कथा है, जो उसके नाम को सार्थक करती है। खास बात यह भी है कि देवी- देवताओं और मंदिर के नाम भी किसी समय हुए किसी वाकये से जोड़कर रखे जाते हैं और वह नाम युगों – युगों तक चर्चित रहता है। एक ऐसा ही मंदिर मध्य प्रदेश के रतलाम जिले मैं मौजूद है। यहां पर कभी शक्ति स्वरूपा देवी ने ऐसी खंखार (खांसी की तरह) ली थी कि उसके वेग से पूरा किला ही ढह गया था।

श्री गढ़खंखाई माता मंदिर 500 साल पुराना है, यानी इसका निर्माण सन् 1500 के आसपास हुआ है। रतलाम-बाजना रोड पर एक गांव राजापुरा माताजी के नाम से है। इसी गांव में माही नदी के किनारे मां का दरबार सजा है। मंदिर के गर्भगृह में कांच की नक्काशी करवाई थी। माताजी के नाम को लेकर भी एक कथा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां राजा रतनसिंह द्वारा रतलाम गढ़ का निर्माण कराया जा रहा था, परंतु राजा अभिमानी था और उसने माता के स्थान पर पहुंचने के बावजूद उन्हें प्रणाम नहीं किया। इस पर माता ने क्रोध में खंखार किया, तो उसके वेग से ही निर्माणाधीन गढ़ बिखर गया। तभी से यह मंदिर गढ़खंखाई के नाम से पहचाना जाता है।

देवी का यह मंदिर रतलाम शहर से 39 किमी दूर है। श्री गढ़खंखाई माता मंदिर में हर साल चैत्र की नवरात्र पर काफी बड़ा मेला लगता है, लेकिन दो अवसर ऐसे आए जब यह सालाना मेला नहीं लग पाया। पिछले कुछ माह पहले चैत्र की नवरात्रि पर कोरोना काल के चलते यहां मेला नहीं लग पाया। इसकेपहले वर्ष 2000 में भी यहां मेला नहीं लग पाया था। उस समय यहां एक डकैत बहादुर का आतंक था, जिसकी वजह से मेले का आयोजन नहीं हुआ था।

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श्री गढ़खंखाई माता मंदिर में चैत्र नवरात्रि का मेला आस्था के साथ ही व्यापार के नजरिए से भी काफी महत्वपूर्ण है। इस मेले में रतलाम के साथ ही आसपास के नगर शिवगढ़, बाजना, रावटी के साथ ही जिले से लगे कई गांवों से हजारों भक्त माताजी के दर्शन करने पहुंचते हैं और यहां के मेले का आनंद लेते हैं। यहां दूर-दूर से कारोबारी आकर मेले में दुकान लगाते हैं।

माही नदी के किनारे पहाड़ी पर मंदिर में मां कालिका के साथ माता शीतला, नागदेव, काला-गोरा भेरू, हनुमानजी की मूर्तियां स्थापित हैं। यह जगह आदिवासी समाज की भी गहरी आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि माताजी सुबह, दोपहर और रात में तीन अलग-अलग रूप बालिका, युवती व प्रौढ़ रूप में दर्शन देती हैं। मंदिर के अंदरुनी हिस्से में कांच की नक्काशी की गई है। यह मंदिर बरसों से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है, यहां कई आयोजन होते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं।