ये हैं वो महान चरित्र जिन्होंने हर संभव तरीके से की प्रभु श्रीराम की सहायता

साक्षात नारायण के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के पूरे जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। शांत और सरल व्यक्तित्व के धनी भगवान श्रीराम हमेशा सभी लोगों को साथ लेकर चलते थे, चाहे वह व्यक्ति कमजोर और निर्बल ही क्यों ना हो। यह उनके व्यक्तित्व का ही करिश्मा था कि जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया तो भगवान श्रीराम की मदद करने के लिए मनुष्य ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी भी आ खड़े हुए। माता सीता को छुड़ाने के लिए पशु-पक्षियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चाहे वह महत्वपूर्ण सूचनाएं पहुंचना हो या फिर रावण की सेना से युद्ध करना हो।

ImageSource

हालांकि आज के समय में यह विचित्र लगता है कि मानव पशु-पक्षियों से कैसे बातचीत कर सकता है? लेकिन मान्यता है कि रामायणकाल में पशु-पक्षियों की ऐसी प्रजाति धरती पर रहती थी जो मनुष्य के सम्पर्क में थी। हालांकि समय के साथ यह प्रजातियां विलुप्त हो गई। तो चलिए जानते हैं भगवान श्रीराम से जुड़े ऐसे प्राणियों के बारे में जो मनुष्य नहीं थे, लेकिन मनुष्यों के संपर्क में रहते थे।

भगवान हनुमानजी – भगवान हनुमानजी को लेकर मान्यता है कि वह मनुष्य नहीं थे बल्कि वानर जाती के है। भगवान श्रीराम की सेना में वानर जाति के कई लोग थे। रामायण में वानर जाति से लोगों के कई महत्वपूर्ण प्रसंग है। भगवान हनुमानजी के अलावा बाली, सुग्रीव, अंगद सहित कई लोग वानर जाति से संबंध रखते है।

जटायु और संपाती – गरुड़, जटायु और संपाती ने अलग-अलग समय में भगवान श्रीराम की मदद की है। जटायु और संपाती ने भगवान श्रीराम को बताया था कि रावण माता सीता का हरण करने के बाद उन्हें कहां लेकर गया है जबकि गरुड़ ने भगवान श्रीराम को नागों के बंधन से मुक्त कराया था। इनका संबंध गिद्ध प्रजाति से है।

गिलहरी – लंका तक जाने के लिए रामसेतु बनाने में नन्ही गिलहरी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सेतु बनाने के लिए जब बड़े-बड़े पत्थर रखे जा रहे थे तब गिलहरी मिट्टी लाकर उनके बीच भर देती थी। रामायण में प्रसंग है कि एक बार भगवान श्रीराम का पैर गलती से नन्ही गिलहरी पर पड़ गया तो भगवान श्रीराम विचलित हो गए। उन्होंने गिलहरी को हाथों में उठाकर क्षमा मांगी। इस पर गिलहरी ने कहा कि प्रभु आपके चरणों को छूकर तो मैं धन्य हो गई हूँ।

काकभुशुण्डि – लोमश ऋषि के श्राप के कारण काकभुशुण्डि को अपना सम्पूर्ण जीवन कौवे के रूप में ही व्यतीत करना पड़ा। काकभुशुण्डि को लेकर मान्यता है कि ऋषि वाल्मीकि से भी पहले काकभुशुण्डि को संपूर्ण रामायण का ज्ञान था। जब गरुड़ को भगवान श्रीराम के ईश्वर होने पर संदेह हुआ तो काकभुशुण्डि ने गरुड़ को पूरी रामायण सुनाकर उनका संदेह दूर किया।

ImageSource

जाम्बवंतजी – भगवान श्रीराम के साथी जाम्बवंतजी का संबंध रीछ यानि भालू की प्रजाति से है। जाम्बवंतजी एक राजा ही नहीं बल्कि एक इंजीनियर भी थे। उन्होंने रावण से युद्ध करने में भगवान श्रीराम की सहायता की थी। जाम्बवंतजी ने ही भगवान हनुमानजी को उनकी शक्तियों से परिचित कराया था।