पावन नगरी द्वारका:भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं बसाया था यह नगर

हमारे देश में जहां- जहां भगवान ने अवतार लेकर अपनी लीलाएं रची और मानवता का कल्याण किया, वे स्थान आज भी पूजे जा रहे हैं। ऐसी ही पावन नगरी है द्वारका, जिसे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने बसाई थी। यह देश के सात पवित्र नगरों में से एक है।

गुजरात में समुद्र किनारे स्थित द्वारका भारत के सबसे प्राचीन नगरों में से एक है। भगवान श्रीकृष्ण मथुरा में अवतरित हुए, पर राज उन्होंने द्वारका में किया। आद्य शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए देश में चार मठों की स्थापना की थी, उनमें से एक मठ द्वारका में है, जो कि शारदा पीठ कहलाता है।

द्वारका पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। द्वारका को देवनगरी के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के मुख्य देवता भगवान श्रीकृष्ण हैं, जो यहां द्वारकाधीश के नाम से जाने जाते हैं।

इस नगरी को भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था। यह भगवान श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है। द्वारका नगरी के ही पास शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान नागेश्वर भी हैं। द्वारका के आसपास अनेक पवित्र मंदिर हैं जो प्रतिवर्ष लाखों पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

\द्वारका में कई प्राचीन इमारते हैं, जो शिल्पकला की बेजोड़ उदाहरण हैं। इस मंदिर को जगत मंदिर (सार्वभौमिक मंदिर) या त्रिलोक सुंदर (तीनों लोक में सबसे सुंदर) के रूप में जाना जाता है। ये मंदिर मूल रूप से 2500 साल पहले भगवान श्रीकृष्ण के पोते वज्रभ द्वारा बनवाया गया था।
द्वारका सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में से एक तथा चार धामों में शामिल पावन नगरी और सात पुरियों में से एक पुरी है। यह नगरी भारत के पश्चिम में समुद्र किनारे बसी है।
काफी समय से शोधकर्ता पुराणों में वर्णित द्वारका के रहस्य का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित कोई भी अध्ययन अभी पूरा नहीं हो पाया है। वर्ष 2005 में द्वारका के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान में भारतीय नौसेना ने भी मदद की। इस दौरान समुद्र की गहराई में कई कटे-छटे पत्थर मिले। यहां से लगभग 200 अन्य नमूने भी एकत्र किए, जिनसे यह आभास हो रहा है की समुद्र तल में कुछ खंडहर अवश्य हैं। इसके बावजूद आज तक यह तय नहीं हो पाया कि यह वही नगरी है, जो भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बसाई गई थी और फिर बाद में समुद्र में डुबो दिया था। आज भी यहां वैज्ञानिक स्कूबा डायविंग के जरिए समुद्र की गहराइयों में कैद इस रहस्य को सुलझाने में लगे हैं।
द्वारका में द्वारकाधीश मंदिर परिसर में ही आद्य गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित शारदा-मठ आज भी है। परंपरागत रूप से आज भी शंकराचार्य शारदा मठ के अधिपति हैं।
द्वारका के प्रमुख द्वारकाधीश मंदिर 72 स्तंभों पर आधारित 5 मंजिला बना हुआ है। पुरातात्विक नजरिए से देखा जाए तो द्वारकाधीश मंदिर 2200 से 2500 साल पुराना है। 15 वीं से 16 वीं शताब्दी के बीच मंदिर का विस्तार किया गया।
द्वारका के पास ही समुद्र के एक टापू पर बेट द्वारका नामक स्थान है। यह वही जगह है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्यारे भगत नरसी की हुण्डी भरी थी। बेट द्वारका के टापू का पूरब की तरफ का जो कोना है, उस पर हनुमानजी का बहुत बड़ा मंदिर है। इसीलिए इस ऊंचे टीले को हनुमानजी का टीला भी कहते हैं।
आज भी रणछोड़जी के मंदिर से द्वारका शहर की परिक्रमा शुरू होती है। पहले सीधे गोमती के किनारे जाते हैं। गोमती के नौ घाटों पर बहुत से मंदिर हैं- सांवलियाजी का मन्दिर, गोवर्धननाथजी का मन्दिर, महाप्रभुजी की बैठक आदि। इस प्रकार द्वारका भगवान श्री कृष्ण के भक्तों के लिए आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। यही वजह है कि यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।