कितना कुछ सहन करती हैं हमारी धरती माँ

मातृभूमि से प्यार किसे नहीं होता, यही तो वो भावना है, जिसकी बदौलत हमारे सैनिक अपनी जान की परवाह किये बिना दिन रात सीमा पर डटे रहते हैं, जब भी कोई नौकरी या business के लिए अपने वतन से दूर जाता है, तो उसे हरपल अपने देश की मिट्टी की महक याद आती है.

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रामायण में भी ये बताया गया है, जब श्रीराम वनवास जाने के लिए अपने राज्य आयोध्या की सीमा से बाहर आते हैं, तो अपनी मातृभूमि को प्रणाम करके उसकी थोड़ी सी मिट्टी अपने साथ ले जाते हैं, और अपनी कुटिया में उस मिट्टी की हर रोज़ पूजा करते हैं.

हर इंसान के जीवन में अलग अलग पड़ाव होते हैं, उसे काम धंधे के सिलसिले में अपना घर बार भी छोड़ना पड़ता है, जहाँ हम जन्म लेते हैं, हमारा बचपन गुज़रता है, वो हमारी जन्मभूमि होती है, और जिस जगह हमारा जीवन गति लेता है, वो कर्मभूमि, और जिस राष्ट्र की छत्र छाया में हम रहते हैं, वो हमारी मातृभूमि होती है.

इंसान जब अपना गाँव और शहर छोड़ता है, तो उसे अक्सर अपनी जन्मभूमि की याद आती है, और अगर उसके गाँव या आसपास का कोई भी व्यक्ति उसे मिलता है, तो उसे बहुत ख़ुशी होती है, और लगता है कि, उसका अपना कोई उसके पास है, लेकिन जब कोई, अपना वतन छोड़ता है, और परदेश में उसकी मुलाक़ात अपने देश के किसी भी कोने के इंसान से हो, तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता, और उसे लगता है कि, अपनी मिट्टी की महक वाला कोई उसे मिल गया है, कितना अलग होता है ये एहसास, और कितना शानदार.

हम सबके ऊपर हमारी मिट्टी का क़र्ज़ होता है, जो हमें हर हाल में चुकाना चाहिए, इसी धरती पर अन्न, फल, फूल, सब पैदा होते हैं, यही मिट्टी हमें पानी के साधन देती है, जो जीने की पहली ज़रुरत है, इसका स्वभाव सिर्फ देना है, ये हमसे बदले में कभी कुछ नहीं मांगती, लेकिन ऋण तो चुकाना ही होता है ना, उसका बहुत आसान तरीका है, हमें बस हर पल मन में ये ख्याल रखना होता है कि, हम जहाँ भी रहें अपनी मातृभूमि को हमेशा नमन करना है, उसका सम्मान सबसे ऊपर है, जैसे गुरु का दर्ज़ा भगवान् से भी ऊपर, ऐसे ही मातृभूमि का दर्ज़ा माँ से भी ऊपर है, माएं भी इस बात को जानती हैं, इसलिए हँसते हँसते अपने प्यारों को देश पे कुर्बान होने के लिए भेज देती हैं, जो सैनिक देश के लिए कुर्बान होते हैं, उसमें मातृभूमि की रक्षा के साथ हमारी भी सुरक्षा होती है, जो हमारे वतन की बाहरी सीमाओं के प्रहरी हैं, वही देश के भीतर भी हर हाल में हमारी सुरक्षा का भरोसा देते हैं, लेकिन हम खुद ही इसकी शांति भंग करते हैं, देश में कई बार छोटी छोटी बातों पर हिंसा होती है, दंगा फसाद होता है, आगजनी होती है, और हम अपनी मातृभूमि का क़र्ज़ चुकाने के बजाय उसे रुलाते हैं, देखा जाये तो हमारी धरती माँ कितना कुछ सहन करतीं हैं.

जिसकी पूजा करनी है, उसे तकलीफ देते हैं, उस ज़मीन को कचरे से गन्दा करते हैं, फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए मिट्टी में ज़हरीले केमिकल डालते हैं, जिससे ज़मीन की उपजाऊ क्षमता बहुत कम हो रही है, जंगलों को लगातार काटे जाने की वजह से, पानी के कटाव को रोकना मुश्किल हो रहा है, और धरती धूप में झुलसती रहती है, पेड़ ही धरती को balance रखते हैं, इतना कुछ सहने के बाद भी धरती हमारी परवाह करती है.

अगर हम धरती की स्वरुप बिगाड़ते रहेंगे, तो जीवन की कल्पना भी मुश्किल हो जाएगी, मातृभूमि को सम्मान देने का सबसे अच्छा तरीका है, उसका ख्याल रखना, जीवन में संतुलन बनाये रखने के लिए पर्यावरण और पृथ्वी दोनों की सामान रूप से सुरक्षा करनी होगी, ज्यादा से ज्यादा पेड़ों को लगाना होगा, कीटनाशक का उपयाग कम करना होगा, विषैले पदार्थों और गंदगी से भी धरती को बचाना होगा, तभी ये हमारा ख्याल रखने में सक्षम होगी.

रामजी द्वारा अपनी मातृभूमि से मिट्टी का एक टुकड़ा ले जान एक मतलब सिर्फ उसकी पूजा करना नहीं था, बल्कि जिस ज़मीन पर वो पीला, बढे और खेले, उसे सामान देना था, इसीलिए तो रामायण के हर प्रसंग का इंसान के जीवन से सीधा सम्बन्ध होता है.