भारत में वैसे तो कई किले हैं लेकिन कुछ ऐसे किले भी है जो अपनी मजबूती के साथ अद्भुत सुंदरता लिए हुए हैं। कई किले खुद तो सुंदर हैं ही लेकिन उसके ऊपर से प्रकृति के सुंदर नजारे देखे जा सकते हैं। ऐसा ही एक किला है पद्म दुर्ग।
अरब सागर और सूर्यास्त का शानदार मनोहारी मिलन देखना हो तो एक बार इस किले पर जरूर जाना चाहिए। पद्म दुर्ग फोर्ट या कासा का किला है ही ऐसा। जो भी जाता है, उसे देखता ही रह जाता है। दूर से यदि इस किले को देखा जाए तो यह कमल के फूल की आकृति वाला दिखता है। फिलहाल इसे कासा का किला कहा जाता है, लेकिन अपने निर्माण के समय इसका नाम पद्म दुर्ग था। पुरातत्व की धरोहर इस किले का निर्माण छत्रपति शिवाजी और उनके उत्तराधिकारी संभाजी ने सिद्दीकियों के जंजीरा किले के जवाब के रूप में करवाया था। मराठा साम्राज्य की आन – बान और शान के प्रतीक इस किले का निर्माण 1663 ईस्वी में हुआ था। 81.5 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ यह किला कई विशेषताएं लिए हुए हैं। इसकी दीवारों पर पाषाण की कलाकृतियां भी बनी हुई हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि इसे सुंदर से सुंदर बनाने के लिए सारे प्रयास किए गए थे। यह वाकई है भी खूबसूरत। 338 साल पुराने इस किले का निर्माण भारतीय कारीगरों ने किया था। समुद्री पत्थरों, ग्रेनाइट और लाइमस्टोन से बना यह किला भारतीय निर्माण कला का अद्भुत उदाहरण है। मराठा शासन काल में बना यह किला 43, 650 स्क्वेयर यार्ड में फैला हुआ है। पुराना किला होने के बावजूद आज भी इसकी दीवारों में एक छेद तक नहीं हुआ है। इससे इसकी मजबूती का अंदाजा लगाया जा सकता है।
कमल के आकार में बने इस किले में 24 बुर्जों पर तोप रखने की व्यवस्था है। शिवाजी महाराज ने इसे काफी मुश्किलों से बनवाया था। इसका मुख्य उद्देश्य था समुद्र मार्ग से होने वाले आक्रमण से गढ़ किले की रक्षा करना और जंजीरा किले पर अधिकार हासिल करना। समुद्र तट पर स्थित होने के कारण इसे जलदुर्ग भी माना जाता है। यह जलदुर्ग अपनी रक्षा करने में तो सफल रहा, लेकिन जंजीरा किला हासिल नहीं हो पाया। इस किले के अंदर 6 बड़े-बड़े गड्ढे हैं, जिनका उद्देश्य शिवाजी महाराज की रण कौशलता का कोई नमूना प्रतीत होता है।
किले के अंदर एक साथ 100 तोपें रखने की व्यवस्था है। वर्तमान में 40 ही तोप बची हैं। इन सभी तोपों का मुंह समुद्र की तरफ घुमा कर रखा गया है। आज भी इस किले में प्रवेश करना आसान नहीं है। मुंबई पोर्ट ट्रस्ट की अनुमति से ही इस में प्रवेश किया जा सकता है। इसके बावजूद यहां पड़ी संख्या में सैलानी पहुंचते हैं और छत्रपति शिवाजी को याद कर यहां से प्रकृति के सुंदर नजारे देखते हैं।