ये बात पुरानी है, अब लगभग 7 साल से भी ज्यादा का समय बीत चुका है. लेकिन ऐसी कहानियाँ कभी पुरानीं नहीं होती, क्योंकि यहाँ जिन लोगों की बात हो रही है, वो सामान्य इंसान हैं. लेकिन उनकी महानता इस देश के हर उस इंसान से बड़ी है, जिन्हें दुनिया भर के पुरस्कार मिलते हैं. भारत रत्न और पदम् विभूषण जैसे सम्मान मिलते हैं, लेकिन फिर भी वो पैसों के लिए जीते हैं. लेकिन गुजरात के एक दंपत्ति नरोत्तम भाई और उनकी पत्नी लक्ष्मी बेन ने अपनी लगभग 180 करोड़ संपत्ति यूँ ही दान कर दी, और जब उन्होंने ऐसा किया तब नरोत्तम भाई की उम्र 97 साल थी, और उनकी पत्नी लक्ष्मी बेन 84 साल की थी. ये दोनों ही निसंतान थे. पर उनकी कमाई इतनी कि कई गांवों का एक साथ भला कर सकें.
इस दंपति ने लोगों की भलाई के लिए ऐसा काम किया जिससे यही साबित होता है कि, वाकई सही मायनों में भारतरत्न के हक़दार तो ये लोग हैं. उनके मुताबिक वो अपनी संपत्ति को किसी भले काम के लिए इस्तेमाल होता देखना चाहते थे.
यहाँ तक कि, इस दंपत्ति ने अपनी अपने अंतिम संस्कार तक की व्यवस्था कर ली थी. ताकि मरने के बाद इनका अंतिम संस्कार ठीक तरीके से हो जाए, इसलिए दोनों ने पहले ही 50 हजार रुपए अलग करके शमशान घाट की व्यवस्थाओं के लिए दान कर दिए थे.
जानकारी के अनुसार, जब लक्ष्मीबेन छोटी थीं, तो कम उम्र में ही उनकी पढाई छूट गई. केवल चौथी कक्षा तक ही पढ़ पाई थी वो, और ये नहीं चाहती कि आज के इस दौर में उनके गांव की बच्चियां पढ़-लिख ना सकें. इसलिए इस दंपत्ति ने अपनी सारी संपत्ति स्कूल, कॉलेज, बनवाने के लिए और बड़े बड़े सामजिक कार्यों के लिए दान कर दी.
आज उनके बारे में किसी भी तरह की कोई जानकारी नहीं है. पर ये सच है, इस धरती का सम्पूर्ण अस्तित्व आज तक ऐसे ही महान लोगों की वजह से टिका हुआ है.