नालंदा विश्वविद्यालय के प्रतियोगी के तौर पर बनाया गया था तिलाधक विश्वविद्यालय

देश के पुराने उच्च शिक्षा के केंद्रों में तिलाधक महाविहार का नाम भी उल्लेखनीय है। पुराने समय में महाविहार का मतलब शिक्षा केंद्र होता था। बिहार प्रदेश में मौजूद नालंदा के खंडहरों से सिर्फ 40 किमी दूर यह प्राचीन विश्वविद्यालय था। इसकी खोज कुछ साल पहले ही की गई है। यह करीब 1500 साल पुराना और एक किमी के इलाके में फैला हुआ परिसर है। बिहार की पहचान हजारों साल पुराने नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से है, लेकिन वहां खुदाई करने पर और भी प्राचीन विश्वविद्यालय मिल रहे हैं। पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में कई अवशेष और संरचनाएं देखने को मिल रही हैं।

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प्राचीन तिलाधक विश्वविद्यालय या महाविहार नालंदा जिले के एकंगरसराय के तेल्हारा क्षेत्र में है। वर्ष 2010 में पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई शुरू की थी। लगभग चार साल बाद वर्ष 2014 में इसके अवशेष मिलना शुरू हुए। करीब 1300 साल पहले यानी सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इन इलाकों का दौरा किया था। उन्होंने अपने यात्रा वृतांत में इस इलाके का नाम ‘तेलीद्का’ बताया है। जैसा उन्होंने विवरण दिया था, वैसा ही खुदाई में मिल रहा है। ब्योरे के मुताबिक ‘तिलाधक महाविहार’ में बौद्ध समुदाय के लोग उच्च शिक्षा हासिल करते थे। इसकी स्थापना पांचवीं सदी में हुई थी। इस विश्वविद्यालय के परिसर में तीन मंदिरों के भी अवशेष मिले हैं। पुरातत्व विभाग के मुताबिक यहां मिले एक बड़े चबूतरे पर एक हजार श्रद्धालु साथ बैठकर प्रार्थना करते थे। अवशेषों से लगता है कि नालंदा से छात्र शोध के लिए तिलाधक महाविहार जाते थे। संभावना है कि नालंदा विश्वविद्यालय की बढ़ती प्रसिद्धि के बाद तिलाधक विश्वविद्यालय को प्रतियोगी के तौर पर स्थापित किया गया था। खुदाई में मिट्टी के दो-दो इंच के शिल्ट पर छात्रों के नाम लिखे मिले हैं।

अनुमान है कि तिलाधक विश्वविद्यालय में सातवीं सदी की शुरुआत में पढ़ाई बंद हो गई थी। पाल शासन काल में फिर पढ़ाई शुरू हुई। इसके बाद 12वीं सदी में आक्रमण करने वालों ने इस विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी। इसमें यहां की लाइब्रेरी में मौजूद ग्रंथ भी जलाकर नष्ट कर दिए गए थे। यहां से मिल रहे प्रमाणों से जलाए जाने की बात साबित होती है। यहां खुदाई में एक फीट मोटी राख की परत मिली है। आक्रमण करने वालों ने यहां एक गैर हिंदू धर्मस्थल बनवा दिया था, उसके स्तंभों में कलश और कमल के चित्र बने हुए हैं, जो आक्रामकों की करतूत के ठोस सबूत हैं।

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देश के अत्यंत पुराने नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला विश्वविद्यालयों की तरह ही तिलाधक विश्वविद्यालय में भी तर्क शास्त्र, ज्योतिष, भूगोल, गणित और अंतरिक्ष विज्ञान जैसे विषयों की पढ़ाई करवाई जाती थी। इसके साथ ही यहां विद्यार्थी की रुचि और उसकी क्षमता के अनुसार रोजगारपरक शिक्षा भी दी जाती थी। अन्य विश्वविद्यालयों की तरह संभवत: तिलाधक विश्वविद्यालय भी आवासीय शिक्षा केंद्र रहा है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि जिन विद्यार्थियों को नालंदा विश्वविद्यालय में स्थान नहीं मिल पाता था, वे तिलाधक विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लेते थे।