जीवन एक छोटी सी यात्रा है. यहाँ कर्मों का लेखा जोखा होता है. मनुष्य के कर्मों का फल भी उसे भोगना ही होता है. बुरे कर्म के पीछे भी विचार होते हैं. मन को रोककर समझाना होता है. बुराई मनुष्य की योग्यता को भी बहुत छोटा कर देती है. पथ भटकने के बहुत रास्ते होते हैं. और यही रास्ते पतन का कारण बनते हैं. रावण योग्य होते हुए भी अपने पथ से भटक गया था. और उसका पतन उसी समय तय हो गया था. जब मनुष्य जीवनपथ पर डगमगाता है, उसका हौसला कम होने लगता है. बस उसी समय प्रभु राम अपने भक्तों को आकर सम्हाल लेते हैं. आज भी जीवन की आवश्कताएं लगभग एक जैसी हैं. सदियों पहले भी इंसान को जीने के लिए बहुत कुछ जुटाना होता था, और आज भी वही है. हाँ भौतिकवादी जीवन शैली का विस्तार हो गया है, लेकिन मूलभूत आवश्कताएं वही हैं जो पहले थी. जब साधन बढ़ जाते हैं तो मनुष्य सम्पन्नता और विलासिता की तरफ अग्रसर होने लगता है. बस वहीँ पर थोड़ा धैर्य रखकर सोचना होता है. अपने क़दमों को सम्हालना होता है. वहां भी हमें प्रभु राम रोककर समझाते हैं, कि जीवन क्षणिक है, लेकिन मोक्ष की राह अनंत है. उसी मार्ग पर चलकर मनुष्य के जीवन की सार्थकता है. और जिनके ह्रदय में प्रभु का वास होता है. वो तुरंत इस बात को समझ जाते हैं, और अपना जीवन सार्थक कर लेते हैं. क्योंकि श्रीराम जीवन जीने की कला में बसते हैं, समस्याओं का हंसकर सामना करना सिखाते हैं, और हर इंसान को ये बताते हैं कि, जीवन बहुत अनमोल है, और ये केवल जीने के लिए है.
श्रीराम जीवन का आधार हैं. एक युग हैं, जो आदि से अनंत तक ऐसे ही रहेगा. श्रीराम के नाम मात्र से ही धरती पर मनुष्य उद्धार हो जाता है. प्रभु की कृपा जिसके साथ है, वहां कोई अनिश्चितता नहीं है. नीयति ने उसके लिए सब कुछ तय किया हुआ है.