जीवन में हर व्यक्ति के सामने कभी ना कभी विपरीत परिस्थिति जरूर आती है। ऐसे समय में हमें हमारी बुद्धि, धैर्य और ज्ञान से काम लेना चाहिए। आज हम भगवान गौतम बुद्ध द्वारा कही गई ऐसी ही एक जातक कथा के बारे में जानेंगे, जिसमें बताया गया है कि कैसे एक घड़ियाल लालच में आकर मुर्ख बन गया जबकि बंदर अपनी सूझबूझ के कारण विपरीत परिस्थिति से बाहर निकल गया।
जातक कथा है कि किस समय वन के बीच से एक नदी बहती थी। उस नदी के बीच एक टापू था, जिस पर स्वादिष्ट फल का पेड़ था। नदी के तट एक चालाक बंदर रहता था। बंदर रोजाना नदी में मौजूद एक पत्थर पर छलांग लगाते हुए टापू पर चला जाता था और स्वादिष्ट फल खाकर वापस लौट जाता था। उस नदी में घड़ियालों का एक जोड़ा भी रहता था। एक दिन मादानं घड़ियाल ने नर घड़ियाल से कहा कि मुझे उस बंदर का हृदय खाने की तीव्र इच्छा हो रही है। इसलिए आप जाओ और उस बंदर का हृदय लेकर आओ।
मादा घड़ियाल की बात सुनकर नर घड़ियाल सोच में पड़ गया कि वह बंदर का हृदय कैसे लेकर आएगा? क्योंकि बंदर फुर्तीला होता है। अगर वह बंदर को पकड़ने के लिए गया भी तो बंदर जल्दी से पेड़ पर चढ़ जाएगा। इसी दौरान बंदर वहां पहुंचा नदी के तट से पत्थर पर छलांग लगाते हुए टापू पर पहुंच गया। यह देख घड़ियाल को एक उपाय सूझा। वह पत्थर की आड़ में जाकर छिप गया। जब बंदर टापू पर फल खाने के बाद वापस नदी के तट पर जाने लगा तो उसे पत्थर की आकृति में कुछ बदलाव दिखाई दिया। वह तुरंत समझ गया कि यहां खतरा हो सकता है।
ऐसे में उसने अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए पत्थर से पूछा कि आज तुम शांत क्यों हो? बंदर की बात सुनकर घड़ियाल को लगा कि यह पत्थर बंदर से बाते करता होगा। इसलिए उसने आवाज बदलकर बंदर की बात का जवाब दिया। घड़ियाल की आवाज सुनकर बंदर को विश्वास हो गया कि पत्थर के पीछे कोई छिपकर बैठा है।
बंदर जल्दी से नदी के तट पर जाना चाहता था, लेकिन उसे कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। इसलिए उसने फिर से आवाज दी कि पत्थर कभी बात नहीं करता है। उसके पीछे जो भी छिपकर बैठा है, मेरे सामने आए। बंदर की बात सुनकर घड़ियाल बाहर आया और कहा कि मेरी पत्नी तुम्हारा ह्रदय खाना चाहती है। स्वयं को विपरीत परिस्थिति से घिरा देख बंदर को एक उपाय सूझा। बंदर जानता था कि घड़ियाल जब मुख खोलते हैं तो उनकी आंखे बंद हो जाती हैं। इसलिए उसने घड़ियाल से कहा कि मैं इसके लिए तैयार हूं। तुम अपना मुख खोलो मैं तुम्हारे मुख में छलांग लगा दूंगा। बंदर की बात सुनकर घड़ियाल ने जैसे ही अपना मुख खोला, वैसे ही बंदर घड़ियाल के सिर पर छलांग लगाता हुआ नदी के तट पर पहुंच गया। बंदर अपनी बुद्धि से बच गया और वापस कभी टापू पर नहीं जाने का निर्णय किया। वहीं मूर्ख घड़ियाल बंदर को जाते हुए देखता रह गया।