आज यानि 28 फ़रवरी को उस महान संगीतकार का जन्म दिवस है, जिसने अपने मन की आँखों से सारा जहान देख लिया था. जिनका नाम था स्वर्गीय रविन्द्र जैन धारावाहिक रामायण में संगीत देकर उसे अमर बनाने वाले महान संगीतकार स्वर्गीय श्री रविन्द्र जैन इस धारावाहिक से जुड़ने से पहले ही पूरी दुनिया में मशहूर थे. अपने अद्भुत संगीत से जन जन के मन को छूने वाले इस संगीतकार ने अपने जीवन में इतनी ऊँचाइयाँ हासिल की, जिनके आसपास भी कोई नहीं ठहरता, रामायण के लिए तो जैसे उनके संगीत ने संजीवनी का काम किया. शुरू से लेकर अंत तक रामकथा के हर प्रसंग पर किसी न किसी गाने ने जितनी खूबसूरती से कहानी को आगे बढ़ाया, वहां संवाद भी अर्थहीन थे, लगता था, बिना गानों के वो प्रसंग शायद उतने प्रभावी नहीं बन पाते.
एक कहावत है, काबिलियत किसी की मोहताज़ नहीं होती. इस दुनियां में ऐसे बहुत यशस्वी लोग हुए हैं, जिनके जीवन का अधूरापन ही उनकी संपूर्णता बन गया, और वो इतना कुछ कर गए कि, ज़िन्दगी उनके सामने नतमस्तक हो गई, संगीतकार श्री रविन्द्र जैन भी ऐसे ही इंसान थे, जब वो पैदा हुए तो उनकी आँखें बंद थी, डॉक्टर ने ऑपरेशन करके उनकी आखें तो खोल दी, लेकिन उनमे रौशनी ना के बराबर थी, और वो भी समय के साथ धीरे धीरे चली गई, पर कहते हैं न, जिनकी आँखें नहीं होती, उनके मन की आँखों में पूरा ब्रह्माण्ड होता है, श्री रविन्द्र जैन की मन की आँखों में भी बहुत गहराई थी.
पारिवारिक फ़िल्में बनाने वाली बड़ी फिल्म कंपनी राजश्री प्रोडक्शन तो जैसे रवीन्द्रजी के संगीत की कायल थी, म्यूजिक डायरेक्टर के तौर पर राजश्री प्रोडक्शन के साथ रवींद्र जी ने करीब 20 फ़िल्में की, इसके अलावा उन्होंने तमिल, मलयालम, जैसी कई भाषाओँ की फिल्मों में संगीत दिया, रवींद्र जैन साहब ने अपना कैरियर गीत लेखन से किया, लेकिन उसके बाद वो गीतकार और म्यूजिक डायरेक्टर के तौर पर आजीवन काम करते रहे. और लगभग 150 फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया.
रामचरितमानस की एक चौपाई है, होइही वही जो राम रचि राखा.. धारावाहिक रामायण के लिए ये चौपाई रवींद्र जैनजी के जीवन में चरितार्थ हो गई, दरअसल पहले इस धारावाहिक में संगीत निर्देशन का काम स्वर्गीय जयदेव जी कर रहे थे, लेकिन अचानक हुई उनकी मृत्यु की वजह से रवींद्रजी को रामायण के संगीत की ज़िम्मेदारी मिली, और उन्होंने उतनी ही बखूबी इस ज़िम्मेदारी को निभाया.
उनकी यादों से जुड़ा एक किस्सा है, रामायण के एक प्रसंग में सीताजी को श्रीराम की निशानी देने के लिए, हनुमानजी को अशोक वाटिका में जाकर, सीता जी को, श्रीराम की पूरी कहानी सुनानी होती है, और संक्षेप में इस कहानी को सुनाने के लिए एक गीत बनाना था, जिसकी शूटिंग अगले ही दिन होनी थी, उनके मन में यही चल रहा था कि, 5 मिनट में कैसे एक गाने में पूरी रामकहानी समेटी जाये, उनके अनुसार उसी रात उन्हें अपने शरीर पर एक शक्तिपात जैसा महसूस हुआ, जिससे उनका सारा शरीर रोमांचित हो गया, और पूरे कमरे में उन्हें एक तेज़ प्रकाश का अनुभव हुआ, और वही से जन्म हुआ इस गाने का, जिसके बोल थे, राम कहानी..सुनो रे राम कहानी..
वो तो कहा करते थे कि, ये गीत उन्हें स्वयं हनुमान जी ने दिया है. भारत सरकार ने संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया, रवींद्र जैनजी आज हमारे बीच नहीं है, पर वो अमर हैं, अपने महान गीत संगीत के ज़रिये, अपने मेहनती और और जुझारू अंदाज़ के ज़रिये आज वो कई ऐसे लोगों की प्रेरणा हैं, जो अपने जीवन में कुछ ख़ास करना चाहते हैं.
स्वयं के लिए वो अक्सर ये पंक्तियाँ कहा करते थे..
तन के हिस्से में सिर्फ दो आँखें,
मन की आँखें हज़ार होती हैं.
तन की ऑंखें तो सो भी जातीं हैं,
मन की आँखें कभी न सोती हैं.