आज पितृपक्ष मोक्ष अमावस्या है. यानि हम सबके पितर आज के दिन हमसे एक वर्ष के लिए विदाई ले लेंगे. हम सब अपने जीवन में जो भी करते हैं, हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद सदैव हमारे साथ रहता है. इसलिए ये पन्द्रह दिन साल में बहुत विशेष होते हैं. इन दिनों धर्म कर्म के कार्यों का विशेष महत्व है. जीवन में बहुत भागदौड़ होती है, ऐसे में यदि आप सम्पूर्णता से श्राद्ध कर्म नहीं कर पाए हैं तो आज के दिन अपने पितरों को तर्पण करके विधि विधान से उन्हें जल देकर और कौवों को भोजन कराने के साथ ही अपने मान्यवर और ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराएं और अपनी क्षमता के अनुसार दान दक्षिणा भी दें. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इससे हमारे पूर्वजों को प्रसन्नता मिलती है और उनकी मोक्ष प्राप्ति के लिए हमारा ये विशेष कर्म और दायित्व होता है.
आप जानते होंगे कि हर वर्ष पितृपक्ष अमावस्या के बाद से नवरात्रि शुरू हो जाती है. 17 सितंबर यानी आज सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या है. कल (18 सितंबर) से अधिकमास शुरू हो जाएगा और यह 16 अक्टूबर तक रहेगा. 17 अक्टूबर से घट स्थापना के साथ ही नवरात्रि का पर्व शुरू हो जाएगा.
कुछ विद्वानों के मतानुसार साल 2001 के बाद आश्विन माह का अधिकमास आया है. मतलब 19 साल बाद ऐसा अवसर आया है. 17 से 25 अक्टूबर तक नव दुर्गा की पूजा की जाएगी. 26 अक्टूबर को बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाएगा. दीपावली का त्यौहार 14 नवंबर को मनाया जाएगा. आप सभी को जानकारी देना चाहेंगे कि आधिकमास में चतुर्थी (20 सितंबर और 5 अक्टूबर), एकादशी (27 सितंबर और 13 अक्टूबर), पूर्णिमा (1 अक्टूबर) और अमावस्या (16 अक्टूबर) विशेष तिथियां रहेंगी।
कब और क्यों आता है अधिकमास
ज्योतिषियों के अनुसार “एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का रहता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर है। ये अंतर हर तीन साल में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अधिकमास कहा जाता है।”
अधिकमास को पुरुषोत्तम भी कहते हैं.
जानकारी अनुसार इस माह को मलिन मास भी कहा गया है. इस वजह से कोई भी देवता इस मास का स्वामी नहीं बनना चाहता. तब मलिन मास ने भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की. मलमास की प्रार्थना विष्णुजी ने सुनी और उसे अपना श्रेष्ठ नाम पुरुषोत्तम दिया.
भगवान विष्णु का वरदान है अधिकमास को
इस माह में जो भक्त भागवत कथा पढ़ेगा या सुनेगा या फिर ध्यान करेगा उसे अक्ष्य पुण्य प्राप्त होगा. इस महीने धर्म से जुड़े कार्य करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और विचारों की पवित्रता बढ़ती है.