सनातन हिंदू धर्म का यह त्यौहार ‘नागपंचमी’ हिंदू धर्म के जीव प्रेम का जीवन्त प्रमाण है। हिंदू संस्कृति में देवी देवता ही नहीं बल्कि पशु पक्षी, वृक्ष वनस्पति, आदि को भी पूजा जाता है। हर जीव में अपने समान ही आत्मा देखी जाती है और इसीलिए हिंदू धर्म में मात्र मनुष्यों का ही नहीं बल्कि संसार के हर जीव का सम्मान किया जाता है। हमारी संस्कृति में, हमारे हिंदू धर्म में गाय, बैल, अश्व, हाथी, शेर आदि को सम्मान पूर्वक पूजा जाता है। पक्षियों में गरुड़, मोर, कोयल, तोता, उल्लू आदि न जाने कितने पक्षियों की पूजा की जाती है। पेड़ पौधों में पीपल, बरगद, नीम, आंवला, तुलसी जैसे असंख्य वनस्पतियों की पूजा की जाती है।
क्योंकि ये सभी किसी न किसी रूप में हमारे जीवन में सहयोगी या उपयोगी हैं परंतु नागों की पूजा तो हमारे धर्म की सहिष्णुता का सर्वोच्च उदाहरण और प्रमाण है।
धार्मिक अथवा आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो देवता, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मनुष्य आदि की भांति सर्प योनि भी सृष्टि का एक मुख्य अंश है और सृष्टि संचालन में इनका विशेष योगदान है। शिवजी का आभूषण, विष्णु भगवान का शयन साधन होने के कारण भी यह प्रजाति मनुष्यों के लिए पूज्य है।
शास्त्रों में आठ प्रमुख नागों का वर्णन मिलता है-
वासुकि: तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।
ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटको धनंजयौ।
अर्थात वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय ये अष्ट नाग हैं।
(भविष्य पुराण उत्तर भाग 32-02-07)
सांसारिक और व्यवहारिक रूप से भी देखा जाए तो भारत एक कृषि प्रधान देश है। खेती को हानि पहुंचाने वाले अधिकांश जीव जंतुओं से सांप कई तरह से खेती की रक्षा करते हैं। साथ ही सांप कई तरह के संकेत भी देते हैं जिसे आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में समझने वाले लोग समझते हैं। सांप बिना कारण किसी को हानि नहीं पहुंचाता ना ही किसी को डसता या काटता है। सांप भी ईश्वर की ही रचना है, वो तभी हानिकारक या डरावना बनता है जब उसे सताया जाता है।
सांप को सुगंध बहुत प्रिय है, चंदन के पेड़ से सांपों का लिपटे रहना इसका प्रमाण है साथ ही चंपा के फूलों की सुगंध भी सांपों को बहुत आकर्षित करती है, गांवों में आज भी घर के आस-पास लोग चंपा के फूल नहीं लगाते। इसी प्रकार केवड़े की सुगंध भी सांपों को बहुत पसंद है।
कुछ विशेष सांपों के सिर में मणि पाई जाती है। मान्यता है कि जो सांप बहुत पुराने हो जाते हैं अर्थात जिनकी आयु कई कई सौ साल बीत चुकी होती है ऐसे कुछ विशिष्ट सांपों के सिर में मणि उत्पन्न हो जाती है। सर्प मणि की यह बात, प्राकृतिक व्यवस्था का अंग तो है ही परंतु हमें इससे एक सामाजिक व्यवहार की सीख भी लेनी चाहिए कि ‘कीमती चीजों को हम सर माथे पर रखें, संभालकर रखें। चाहे वह कीमती विचार हों, कीमती अनुभव हों, कीमती रिश्ते हों या कीमती लोग हों।
सांप की जीवन चर्या से एक और व्यवहारिक संदेश मिलता है- सांप बिल में रहता है और अपने जीवन का अधिकांश भाग वह एकांत में ही बिताता है। हमें भी सांप की इस दिनचर्या से सीख लेकर अपने व्यवहार में यह बातें लानी चाहिए कि जितना हो सके अनावश्यक भीड़ में बने रहकर अपना प्रभाव दिखाकर दूसरों को दबाने, डराने, धमकाने से अच्छा है कि अपने समय का सदुपयोग करें अंतर्मुखी एकांतवासी रहकर जीवन यापन करें।
एक और बहुत व्यावहारिक बात- सावन महीना बरसात का महीना होता है। बिलों में पानी भर जाने के कारण अधिकांश जीव जंतु बाहर आ जाते हैं, जिनमें सांप सबसे अधिक होते हैं। चूहों आदि से तो मनुष्य समझौता भी कर लेता है पर सांपों को देखते ही लोग मारने लगते हैं। हमारे हिंदू धर्म के जीव प्रेमी पूर्वजों ने संभवतः इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए नागों की पूजा का प्रचलन स्थापित करके उनके प्रति पूज्य और सम्मान भाव रखने की परंपरा चला दी।
आध्यात्मिक और धार्मिक मान्यता अपनी जगह है परंतु व्यावहारिक रूप से सावन के महीने में आने वाले इस जीव प्रेम के प्रतीक त्यौहार का एक मुख्य कारण यह भी है कि वर्षा के कारण बेघर हुए जीवों पर मनुष्य किसी तरह का अत्याचार ना करे।
संक्षेप में यही कहना चाहिए कि हिंदू धर्म की हर मान्यता, हर त्यौहार मात्र धार्मिक रूप से ही नहीं बल्कि व्यावहारिक और वैज्ञानिक रूप से भी मानव सभ्यता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, उपयोगी है।
जय हिंद