आज का दिन है बहुत पावन, कार्तिक पूर्णिमा और गुरु नानकदेव के जयंती मनाई जाती है एक साथ

त्योहारों के देश भारत में हर त्यौहार को एक उत्सव की तरह जिया जाता है. त्योहारों में इस धरती की जीवन शैली और संस्कृति दिखाई देती है. भी हाल ही में , नवरात्रि, दशहरा, दीवाली, जैसे बड़े त्यौहार संपन्न हुए और अब इसी माह के अंतिम दिन यानि आज 30 नवम्बर को कार्तिक पूर्णिमा मनाई जा रही है. इस त्यौहार का विशेष धार्मिक महत्त्व है. और आज के दिन लोग वाराणसी और हरिद्वार में पवित्र गंगा नदी में स्नान करते हैं, तो वहीँ अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर के पावन सरोवर में भी डुबकी लगाते हैं.

हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को देव दीपावली का त्योहार मनाया जाता है. दीवाली के पंद्रह दिन बाद देव दिवाली मनाये जाने के कारण इस दिन का विशेष महत्त्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवलोक से सभी देवता वाराणसी यानि महाकाल की नगरी काशी में पधारते हैं. इसलिए कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को काशी में बहुत साज-सज्जा की जाती है.

देव दीवाली 2020 तिथि मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि 29 नवंबर 2020 की रात 12 बजकर 47 मिनट से आरंभ हो जाएगी जो 30 नवंबर 2020 को रात 02 बजकर 59 मिनट को समाप्त होगी. देव दिवाली पर भी प्रदोष काल में पूजा की जाती है। इस बार देव दिवाली पर पूजा करने का शुभ मुहूर्त 30 नवंबर को संध्या के समय 05.08 बजे से लेकर 07.47 बजे तक है.

देव दीवाली का धार्मिक महत्त्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रिपुरासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से तीनों लोकों में सभी बहुत त्रस्त हो चुके थे. उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने हेतु सभी देवताओं ने मिलकर भगवान् शकर की प्रार्थना की, और शिवजी ने उस दुष्ट राक्षस का अन्हार किया. जिस दिन ये ये घटित हुआ उस दिन कार्तिक पूर्णिमा थी. और उसके बाद सभी देवतागण भगवान शिव के साथ काशी पहुंचे और दीप जलाकर खुशियां मनाई. कहते हैं कि तभी से ही काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती रही है. इस दिन दीप दान का बहुत महत्व माना गया है. इसलिए इस दिन विशेष रूप से दीपदान किया जाता है.

गुरु नानक जयंती

हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को गुरुनानक जयंती भी मनाई जाती है. गुरुनानक देव जी सिखों के प्रथम गुरु हैं. गुरुनानक देव जी का ज्यादातर समय चिंतन औऱ सत्संग में ही बीतता था. बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति की वजह से तीस वर्ष की आयु तक उनका ज्ञान बहुत परिपक्व हो गया था, और वो जगह-जगह जाकर लोगों के उपदेश देते थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई में लगा दिया. और उन्होंने ही सिख धर्म की शुरुआत की थी.