विदेशियों से बेहतर हैं हमारे तौर तरीके और खान‌ पान, लेकिन हम भूल रहे हैं अपनी संस्कृति

जीवन के मायने समझ कर जीना ही समझदारी है। लेकिन हम खुद से ज्यादा दूसरों को देखते हैं और जैसा वो कर रहे हैं हम वही करना चाहते हैं, बस वहीं से हमारे मूल्यों का पतन होने लगता है।

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कुछ ऐसा ही हमारे देश में भी हो रहा है। लोग पश्चिम के देशों की नकल करने में अपनी शान समझते हैं लेकिन वे यह नहीं देखते कि इससे हमारी भारतीय संस्कृति को कितना नुकसान पहुंच रहा है।

भारत में नकल के मामले में कुछ अजीब से हालात दिखाई देते हैं। कुछ लोग अपनी गरिमामयी संस्कृति को भुलाकर यूरोपीय देशों की देखादेखी करते हैं। खास तौर पर वे लोग जो यूरोप की यात्रा कर आए हैं, वहां की नकल करने में कोई झिझक महसूस नहीं करते। संभ्रांत दिखने के चक्कर में भारतीय संस्कृति को भुलाकर कई लोग यूरोप के खान-पान और पहनावे को इस कदर अपनाए हुए हैं, कि उन्हें इस बात का भी भान नहीं रहता कि कहीं वे हंसी के पात्र तो नहीं बन रहे।

यदि बात कोट, पेंट, टाई की करें तो यूरोप में ये पहनना जरूरी है, क्योंकि वहां साल में आठ महीने ठंड पड़ती है। वहां के लोगों के लिए यह पोशाक मौसम के अनुकूल है, लेकिन वहां की नकल करते हुए हम इस पोशाक को बिना मौसम का ध्यान रखे पहनेंगे, तो गलत ही होगा। कितनी हास्यास्पद बात है कि शादी वाले दिन भारत में दूल्हा कोट, पेंट, टाई के बिना अपनी बारात तक नहीं ले जाता, भले ही उस वक्त भीषण गर्मी पड़ रही हो। कई बार इस परिस्थिति में दूल्हे गश खाकर गिर चुके हैं।

इसी तरह खान-पान में भी हम व्यवस्थाओं और जीवनशैली में अंतर जाने बिना यूरोप की नकल करने लग गए हैं। वास्तव में यूरोप में ताजा भोजन उपलब्ध होना मुश्किल होता है। इस कारण वहां के लोगों के लिए बासे आटे- मैदे से बने पिज्जा, बर्गर और नूडल्स खाना मजबूरी है, लेकिन हमारे भारत में यात्रा में भी ताजा और गरमागरम भोजन आसानी से मिल जाता है। इसके बावजूद यूरोप की नकल के चक्कर में हम अपने देश के ताजे और स्वादिष्ट भोजन को छोड़ बीमार कर देने वाले पिज्जा -बर्गर को खाने के लिए होड़ लगाने लग जाते हैं और इन सेहत खराब करने वाले खाने के लिए बड़ी राशि भी खर्च कर देते हैं।

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यह भी देखें कि ताजे भोजन की कमी के कारण रेफ्रिजरेटर का इस्तेमाल करना, यूरोप की मजबूरी है। भारत में तो रोज ताजी सब्जी बाजार में मिल जाती है। इसके बावजूद हम यूरोप की जीवनशैली की नकल में हफ्तेभर की सब्जी बेवजह अपने फ्रिज में ठूंस देते हैं और बेकार हो जाने के बाद भी उसे खाते हैं। यूरोप में लस्सी, दूध, जूस जैसी चीजें भी कम ही मिलती हैं। इस कारण उन्हें कोल्ड ड्रिंक पीना पड़ता है। उनकी तुलना में हमारे देश में कम से कम 50 तरह के पेय पदार्थ मौजूद हैं। इसके बावजूद भारत के लोग अनावश्यक रूप से देखादेखी में कोल्ड ड्रिंक पीकर अपना गला और सेहत खराब कर रहे हैं। कई लोग तो यूरोप के इतने ज्यादा अंधभक्त हैं कि भोजन करते हुए भी कोल्ड ड्रिंक की चुस्कियां तक लेते रहते हैं।

आश्चर्य तो तब होता है जब देश का पढ़ा-लिखा वर्ग भी बिना विचारे यूरोप की नकल करता दिखाई देता है। हमारी आने वाली पीढ़ी को भारतीय संस्कृति के साथ सेहतमंद बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हम आंखें मींच कर यूरोप की नकल कर रहे लोगों को रोकें, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले स्वयं में सुधार करें।