भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में तुलसी महज एक पौधा नहीं बल्कि इसे देवी या माता के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि तुलसी हर आंगन में होनी चाहिए। जहां तुलसी होती है वहां नकारात्मकता और दु:ख नहीं आते। पवित्र पौधा होने के साथ ही इसे कई बीमारियों के इलाज में कारगर औषधि के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो तुलसी अन्य पौधों की तुलना में अधिक प्राणवायु यानी ऑक्सीजन छोड़ती है और इसमें कार्बन डाइ ऑक्साइड सोखने की क्षमता भी बहुत होती है। इस प्रकार तुलसी पर्यावरण की रक्षा और जीवन के लिए बहुत फायदेमंद होती है।\
पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी कहते हैं कि यदि तुलसी के आधे पत्ते से भी प्रतिदिन भगवान की पूजा की जाए तो भी वे दर्शन देते हैं। अपनी लगाई हुई तुलसी की जड़ें जितनी फैलती हैं, उतने ही विस्तार के साथ व्यक्ति हजारों युगों तक ब्रह्मलोक में स्थान प्राप्त करता है। यदि कोई तुलसी मिले जल में स्नान करता है तो वह भगवान श्रीविष्णु का आशीष प्राप्त करता है और उसे विष्णु लोक में स्थान मिलता है।
देव प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी एकादशी भी कहते हैं। तुलसी को धन की देवी लक्ष्मी का निवास माना जाता है, इसलिए कहा जाता है कि जो भी इस मास में तुलसी के समक्ष दीप जलाता है उसे बहुत लाभ होता है। इस दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है। तुलसीजी का विवाह भगवान श्रीकृष्ण के ही स्वरूप शालिग्राम से कराया जाता है। मान्यता है कि इससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि कार्तिक मास में तुलसी के पास दीपक जलाने से अनंत पुण्य मिलता है।
वास्तव में तुलसी औषधि के रूप में इस्तेमाल करने पर मां की तरह सेहत की देखभाल करती है। पवित्र होने के साथ ही यह एक औषधीय जड़ी-बूटी है, जिसका उपयोग आयुर्वेद में किया जाता है, जो वैकल्पिक चिकित्सा का एक रूप है। तुलसी में कई लाभकारी गुण हैं, जिसके इस्तेमाल से फायदा होता है। तुलसी में ये यौगिक होते हैं-
यूजेनॉल: यह दर्द दूर करता है, जो कि इलायची और लौंग के तेल में भी पाया जाता है।
उर्सोलिक और रोजमैरिक एसिड: एंटीआॅक्सिडेंट और एंटी-एजिंग गुणों वाले यौगिक होते हैं।
एपिगेनिन: एक फ्लैवोनॉइड है, जो शरीर के गैरजरूरी तत्व (कचरा) हटाने में मदद करता है।
ल्यूटिन: यह एक एंटीआॅक्सिडेंट कैरोटीनॉयड है, जो आंखों की सेहत के लिए महत्वपूर्ण होता है।
तुलसी का उपयोग आमतौर पर अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, गठिया, जुकाम और फ्लू के लिए भी किया जाता है।
शोध से पता चलता है कि तुलसी चिंता मिटा सकती है। चिंता से परेशान 35 वयस्क लोगों पर सन 2008 के एक अध्ययन किया गया था। इसमें शोधकर्ताओं ने पाया कि 60 दिनों तक रोज दो बार कैप्सूल के रूप में तुलसी लेने से चिंता का स्तर काफी कम हो जाता है।
सनातन धर्म में कहा जाता है अति वर्जयेत… मतलब, किसी भी चीज की अधिकता से नुकसान भी हो सकता है। चिकित्सा विज्ञान में भी माना गया है कि किसी भी औषधि का लाभ तभी मिलता है, जब उसे सही मात्रा में लिया जाए, अन्यथा वह नुकसान भी कर सकती है। ऐसा ही तुलसी के साथ भी हो सकता है। यदि तुलसी के पत्ते गर्भवती महिला को खिलाए जाएं तो उसके भ्रूण की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। अधिक मात्रा में लेने पर इससे गर्भपात भी हो सकता है। वास्तव में इसमें एस्ट्रैगोल होता है, जिसके कारण गर्भाशय में संकुचन हो सकता है, जो नुकसानदायक हो सकता है। तुलसी की पत्तियां कब्ज नाशक होती हैं, ऐसे में ज्यादा खाने से दस्त लग सकते हैं। इसी तरह मधुमेह के रोगियों के लिए यह जान लेना उचित होगा कि तुलसी के पत्ते उन पर क्या प्रभाव डालेंगे। विभिन्न अध्ययनों में पता चला है कि तुलसी खाने से रक्त शर्करा स्तर (शुगर लेवल) घट जाता है। अगर कोई पहले से ही मधुमेह की दवा ले रहा है तो तुलसी के पत्ते खाने से चीनी का स्तर बहुत कम हो सकता है।
तुलसी में गर्भ- निरोधक के गुण होते हैं। परिवार नियोजन करने वालों के लिए यह राहत की बात है, लेकिन जो लोग संतान की इच्छा रखते हैं, उन्हें नुकसान हो सकता है। तुलसी का एक गुण यह भी है कि वह रक्त को पतला कर देती है। ऐसे में वे लोग जो ब्लड थिनिंग (खून को पतला करने) के लिए दवाएं ले रहे हैं, अगर वे तुलसी भी लेते हैं, तो उनका रक्त ज्यादा पतला होकर तकलीफ पैदा कर सकता है।
इसलिए आवश्यक है कि हमें किसी भी दवा या जड़ी-बूटी फिर भले ही वह तुलसी ही क्यों न हो अधिक मात्रा में नहीं लेनी चाहिए। अच्छा तो यह होगा कि औषधियों की जानकारी रखने वाले किसी चिकित्सक से पूछकर सेवन करना चाहिए। हां, तुलसी को घर के आंगन में लगाने से फायदे ही फायदे हैं, इससे नुकसान कुछ भी नहीं है। शुद्ध पर्यावरण के नजरिये से भी इसे घर में अवश्य लगाना चाहिए।